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*****घर जाने दे छोंड मोरी बँइयाँ*****
Hindi Poetry |
*****घर जाने दे छोंड मोरी बँइयाँ*****
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विनति करति तोरे पइयाँ पड़ति हूँ ,
मोहन सों झगड़इया,
घर जाने दे छोंड मोरी बँइयाँ ।
नगर-नगर के लोग सुनेंगे ,
चरचा करेंगी ब्रज- नारियाँ ,
जाओ जी जाओ तुम पाओगे गारियाँ,
मोहन मुरलि – बजइया ।
घर जाने दे छोंड मोरी बँइयाँ ।
जाकर मात जसोदा सों कह दूँ ,
फ़ोरत मटकि, नन्द नन्दन यूँ ,
रह-रह खींचत चुनर सारियाँ
हाथ सों तारि बजइया ।
घर जाने दे छोंड मोरी बँइयाँ ।
*****भावना*****
मनोहर चित्रण और भावनात्मक कविता.
@siddhanathsingh, Thank You Very Much Sir !!!!
Jai Ho !!!!
@dp, Thank You !!!
बहुत खूब !!! सुन्दर चित्रण एक गोपी की व्यथा का !!!
बधाई !!!!
@Harish Chandra Lohumi, Thank you sir !!
Bahut Khoob bhawna ji,
likhate rahiye 🙂