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काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता
Anthology 2013 Entries, Hindi Poetry |
कभी-कभी ये ख्याल है आता
काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता |
शब की एक रात में बादलों के पीछे का माहताब (शब-चांदनी रात,माहताब-चाँद)
एक पल को जब नकाब उठाता
तब है ये ख्याल आता
काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता |
जब रुत है बदलती ,
हवा का एक झोंका, सूखे पत्तों से टकराकर
हिज्र का अहसास दिलाता (हिज्र-जुदाई)
तब है ये ख्याल आता
काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता |
सबा में एक अधखिला गुलाब ,
चाहता है तकरिबे-रु-नूमाई अपने ही रूआब में (तकरिबे-रु-नूमाई — विमोचन समारोह )
लेकिन खुदा बड़ी साफगोई से जफा कर जाता (साफगोई-सफाई,जफा-बेवफाई)
तब है ये ख्याल आता
काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता |
जब वक़्त की पैरहन बन जाती है खामोशियाँ (पैरहन-लिबास)
और उन्ही खामोशियों की गुफ्तगू में
कोई परवाना शमां से मिलने को मचल जाता
तब है ये ख्याल आता
काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता |
कभी दो लहरें मिलने दौडती है
बिछड़े यारों की तरह ,
कभी शाखों से गुल है टपकते
रूठी बहारों की तरह ,
और उस एक पल के इन्तजार में ,सारा समाँ ठहर जाता
तब है ये ख्याल आता
काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता |
मुद्दतों बाद जब घाव सूखने को है
और शिद्दत से कोई उसे कुरेद जाये
फिर पथराई हुई आँखों के कोरों पर
ठिठक जाये कोई आंसू ,लेकिन पिघल ना पाता,
तब है ये ख्याल आता
काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता |
जब मन हो बैठा ,
खुद में डूबा किसी सुनसान में ,
लाख हो भीड़,
पर, आँखों में हो डूबती-उतरती लहरें और ढेरों तारे आसमान में
तभी किसी आहट से दिमाग दौड़ता हकीक़त में
लेकिन दिल , उन बन्धनों को तोड़ कर भाग जाता
तब है ये ख्याल आता
काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता |
जब निकलती है बरसों पुरानी कोई तस्वीर ,
और चेहरों से होती है ,मन-ही-मन गुफ्तगू
उस एक तरफ़ा शिकवे से
मेरी कलम से कोई तराना उभर आता
तब है ये ख्याल आता
काश ! ये वक़्त यंही ठहर जाता |
वक्त नहीं ठहरता अहसास ठहर जाते है
यादो के भीतर से बस जख्म उभर आते है
रिश्तो की हकीकत ही होती ऐसी
जब भी मिलाने को आते है मिलो दायरे बढ़ जाते है
@rajendra sharma ‘vivek’, बहुत खूब
बढ़िया अंदाज़ ए बयाँ और सुन्दर रचना
मनभावन
हार्दिक बधाई ….
“लेकिन खुदा बड़ी साफगोई से जफा कर जाता” गर
“लेकिन खुदा बड़ी सफाई से बेवफाई कर जाता ” होता
तो क्या फर्क पड़ जाता ?
वैसे ये वख्त कहीं कैसे ठहर जाता
वो तो किसीसे भी कोई रिश्वत नहीं लेता
वरना पांच साल को दस साल न बना देता …..! 🙂
@Vishvnand, धन्यवाद, शुक्रिया |
फर्क तो हो जाता सर, न मानो तो एक बार दोनों तरह से बोलकर देख लीजिये | हिंदी का अपना रस है और उर्दू की अपनी नजाकत, शफ्फाकी |
और वक़्त भी ठहरता है सर ………….
@kshipra786
Thank you very much for your taking the comment in the right spirit and the elegant respecting reply .
nirala andaze bayaan, bahut khoob.
@siddha Nath Singh, thankyou sir.
वाह!