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जो ढली शाम तो जुगनू सी चमकती यादें
Hindi Poetry |
जो ढली शाम तो जुगनू सी चमकती यादें
मेरी तनहाई की ज़ेबाई लगीं हैं करने. zebaayi-sajavat
एक एक चीज़ एकाएक हुई है गोया goya-bolne lagna
बात दी छेड़ रूखे यार की सारे घर ने.
बंद खिड़की के किसी छेद से छनती किरनें
सूने बिस्तर को लगीं छेड़ के देने ताने.
अलगनी पर वो टँगी रंग भरी ओढ़नियाँ
होके बेचैन लगीं ढूढने उनके शाने shaane-kandhe
सूने रस्ते पे लगे कान कि शायद आये
उन थके क़दमों की मद्धम सी शनासा आवाज़, shanaasa-parichit
इस उदासी में किसे ढूँढूँ कहाँ अब जाऊं,
हमनफस कोई नहीं है न कोई है हमराज़. hamnafas-suhrid
जुस्तजू काश कि परवान मेरी चढ़ पाए
ख्वाब ही आयें दिले जार सुकूँ से भरने..
सुन्दर !