« आँखें | पता किसी को नहीं सिर्फ अपनी बारी का » |
मेरी आँखों की कही कोई और तो सुनने से रहा ||
Hindi Poetry |
मियाद पूरी हो चुकी मेरी ख्वाहिशों की
अब तो उनकी यादों में भी कोई मजा न रहा ||
ना तूने सुनी ना उसने कभी फुर्सत से
मेरी आँखों की कही कोई और तो सुनने से रहा ||
गुमान था जिस नींद पे मुझे, बेसबब ही टूट जाती है
दिले सुकून को अब तो ख्वाबों का भी सहारा ना रहा ||
बरसों से हूँ इस शहर में, आजकल पराया सा लगता है
शायद इसलिए की अब यंहा कोई मेरा अपना ना रहा ||
sundar bhaavnik rachanaa
bahut pasand aayii
Hardik badhaaii….!