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गिनती ….!
Hindi Poetry |
I don’t know why, but just felt like joyfully composing one like this for fun and posting it here, to share.
गिनती ….!
एक तो तुम बिना बताये ही,
दो बजे आई हो, और मुझे मुसीबत में डाल दिया है
तीन बजे आतीं तो भी चलता, पर,
चार बजे के बाद आऊंगी, ऐसा क्यूँ कहा था.
पाँच बजे का प्रोग्राम है, और हम टाइम पर आकर बैठे हैं,
छै बज गए हैं, बिना शुरू हुए, और अब कहते हो कि
सात बजे शुरू करेंगे, तो फिर आगे गडबड और मुसीबत है
आठ बजे कैसे ख़तम कर सकोगे प्रोग्राम को.
नौ के पहले तो हमें घर पहुँचना ही है, तैयारी के लिए,
दस बजे तक तो मेहमान जो आनेवाले है, डिनर के लिए
No doubt, fun is fun and here we can see that fun is so timely.
enjoyed ur poem sir
regards
deep