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“बच्चों का हुनर पहचानो”
Hindi Poetry |
एक शिकायत हॅ मुझे उन अभिभावकों से,
हॅं जो अनजान अपने बच्चों के हुनर से.
बचपन की गतिविधियों पर ही भांप जाओ,
अच्छी बातों पर उन्हें शाबाशी का पात्र बनाओ.
हर बच्चा हॅ खुद में खास,
न उडाओ उनकी कला का उपहास.
माना हॅ जरुरी पढाई-लिखाई भी आज,
जरुरी नहीं हर बच्चा हो पढाई में अव्वल,
हुनर भी उन्हें दिलाएगा नई पहचान कल.
बच्चों का मन होता हॅ कोमल, इसे न तोडो,
हॅं ये कच्ची मिट्टी का घडा, सही दिशा में मोडो.
अनुरोध हॅ मेरा सभी माता-पिता से,
गर सभी महापुरुषों के अभिभावक आपकी तरह सोचते,
तो आज गांधी, कलाम ऑर धोनी न मिलते.
माना वर्तमान के बच्चों को समझाना हॅ मुश्किल,
पर आपकी जिद से भी न होगा उन्हें कुछ हासिल.
आपके लिए उनके दिल में बढ जाएगी नफरत,
गुनेहगार बन जाओगे आप, जो न होगी पूरी उनकी हसरत.
उनकी कला को देकर बढावा, दो उन्हें नई पहचान,
आखिर होगा संग उनके, रोशन आपका भी नाम.
राजश्री राजभर
बहुत अच्छी कविता है,
निर्देश का अच्छा प्रभाव है,
मात पिता, बड़ों के सर पर,
समझो ये ही तो पुण्य कर्तव्य है.
राजश्री जी इस सुंदर कविता पर बधाई
Thank u so much VishVnandji for your best comment.
very true VishVnand ji is absolutely right
regards
deep
I also agreed rajdeepji. thank u so much rajdeepji.
अच्छी रचना,सुन्दर मनन योग्य भाव।