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“बसंत पंचमी आई”
Anthology 2013 Entries, Crowned Poem, Hindi Poetry |
पीताम्बर ओढ़े है धरती,
यौवन छाया है हर ओर…
माँ सरस्वती पद्मासन पर,
हो रही हैं विभोर…
नील गगन में उड़ी पतंगें,
भँवरों ने भरी उन्मुक्त उड़ान…
हम भी पाएँ विद्या का वर,
हे माँ दो तुम ये वरदान…
चहूँ और है बसंत छाया,
देखो मदन की कैसी माया…
कंचन कामिनी हो रहीं विह्वल,
हैं पिया उनके परदेस गए…
नवयोवनायें हैं पीत वस्त्र में,
जैसे धरती पर फैली हो सरसों…
सुर, कला ओर ज्ञान की देवी,
बाँट रही हैं अमृत सबको…
केसर का है तिलक लगाये,
धरती अपने भाल पे…
हंस भी देखो मोती चुगता,
करता माँ की चरण वंदना…
क्यूँ न पूजें हम भी लेखनी,
करती जो सहयोग बहुत…
न कह पाते होठों से जो,
कर देती सब वो अभिव्यक्त…
और पुस्तकें भी तो होतीं,
मित्र हमारी सच्ची…
ज्ञान बढ़ाती हैं ओर हमको,
करती हैं वो प्रेरित…
पीताम्बर ओढ़े है धरती,
यौवन छाया है हर ओर…
माँ सरस्वती पद्मासन पर,
हो रही हैं विभोर…
Nice flow..nice feel…nice festival….
@seema ji, And so very nice comment…Thanx a lot… 🙂
Sunder kavita.
@medhini ji, Sundar prashansha…Dhanywad… 🙂
बहुत सुंदर कविता.
पूरानी हिन्दी कविताओं के प्यारे ढंग और शैली की याद दिलानेवली. उत्तम
मुझे मेरा बचपन याद आ गया, जब ऐसी ही कवितायें पढ़ सुन कविताप्रेम का रंग चढ़ा था, जो पूरे व्यावसायिक जीवन में Dormant (सुस्त ) सा रह गया था और अब retirement के बाद p4poetry में नए रूप में उभरा है.
इस कविता ने अपनी तरह से सारी याद जगा दी.
इस पोस्ट के लिए आपको हार्दिक बधाई और बहुत बहुत धन्यवाद.
@VishVnand ji, आपका एक अनोखा अंदाज़ है…जो किसी को भी मोहित कर सकता है…आपकी प्रशंसा से दिल खुश हो गया…आपके शब्द सदा ही मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहेंगे…धन्यवाद जी… 🙂
Basant panchmi ka aisa varnan lagta hai ki wakai saraswati dharti pr utr aai hon.
kavita wakai nice hai.
basant panchmi ke rang me rang di dinua sari
likhte rho aisi kavita hamesha
yahi hua hai hamari.
jaihind, jaibharat
@sandeep, aapki prashansha aur protsahan ke liye bahut-bahut dhanywad…lagta hai mera likhna safal ho gaya…dhanywad… 🙂
पीताम्बर ओढे है धरती…
यौवन छाया है हर ओर…
माँ सरस्वती पद्मासन पर…
हो रही हैं विभोर…
सुंदर शब्दों से रचित बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने !
@sonal ji, और आपके सुंदर से कमेन्ट के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद… 🙂
प्रवीनजी बड़ी प्यारी है……
मन को भा गई, दिल को लुभा गई….
बचपन की यादों को,ताजा कर गई…
मै सरजी (विश्वनंदजी) से सहमत हूँ.
@dr.paliwal ji, आपको ये कविता पसंद आई…बस, मेरा लिखना सफल हो गया…बहुत-बहुत धन्यवाद् जी… 🙂
basant kavita bahut hi pyaari
@renu rakheja ji, प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद… 🙂
थैंक्स,
बसंत कविता के लिए आपको हमारी और से शुभकामनाये
दयाल नागदा
उदयपुर राजस्थान
@Dayal Nagda, Udaipur Rajasthan, Dayaal ji, maafi chaahta hoon deri se uttar dene ke liye… 🙁
Aapko meri rachna achchi lagi jaankar prasannata hui… 🙂
Aage bhi padhte rahiye aur apne vicharon se mujhe avagat karaiye…
ખુબ સુંદર પ્રવિણજી… તમારી કવિતાની સાથે ચિત્ર પણ અદભૂત મુક્યું છે…!
વસંતની જેમ તમારા શબ્દોમાં પણ અનેરો રંગ છે… એ માટે ખુબ ખુબ અભિનંદન… 🙂
ને સાથે 5 ***** 🙂
@Gargi, તમારા સ્નેહપૂર્ણ શબ્દો અને 5 સ્ટાર માટે હૃદય થી ખૂબ ખૂબ આભાર… 🙂
આમજ મને હમેશા પ્રોત્સાહિત કરતા રહેજો… 🙂
बहुत ही सुन्दर रचना और लिखनें का सुन्दर अंदाज, आप की इस कबिता में प्रकृति की सुन्दरता का अति उत्तम चित्रण है – बधाई
@Swayam Prabha Misra, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ स्वयं प्रभा जी… 🙂
आपने मेरी इस रचना के लिए समय निकाला, बहुत अच्छा लग रहा है… 🙂
आपका हृदय से आभारी हूँ…
So nice I like it