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कभी कभी दिल से बहती है,अश्को की एक लम्बी धारा
Crowned Poem, Hindi Poetry |
कभी कभी दिल से बहती है, अश्को की एक लम्बी धारा
कैसे दिखाऊ मै तुमको वो दरिया जिसका नहो कोई किनारा ||
जबसे मुझसे रूठ गई तुम, हँसी नही होठो पे यारा
एक तुम ही थी हमदम मेरी, नजरो का तुम थी नजारा ||
कभी कभी मुझपर हंसती है, मेरी किस्मत कह मुझको बेचारा
कैसे बताऊ मै तुमको, कैसे हू मै, ख़ुद से हारा ||
जहा तुम मुझको छोड़ गई थी, वही खड़ा हू अबतक यारा
तुमसे ही जन्नत थी मेरी, तुम ही थी जीने का सहारा ||
कभी कभी सीने मे जलती है, यादो की बुझती शरारह [sharaarah =chingaari]
कैसे समझाऊ मै तुमको, की बिन तुम नही अब मेरा गुजारा ||
जो तुम मुझको दिखा गई थी, नहीं दिखे अब वो सितारा
तुमसे ही रौशन थी नजरे, तुम ही थी बातो का इशारा ||
कभी कभी मुझपर हंसती है, मेरी किस्मत कह मुझको बेचारा
कैसे बताऊ मै तुमको, कैसे मै हू, ख़ुद से हारा ||
Bahut sundar, har pankti lajawab…..
@dr.paliwal, Thank you so much Paliwal Ji
Man ko chu gayi yeh kavita….Ek dum lajawab! 🙂
@ajusal, Thanks Friend
Nice one Vijay.
@Raj, Thanks Raj Ji, Its really a pleasure for me that you like my poem
Waah क्या khub …..jabab नहीं आपका…..
@Ravi Rajbhar, Thanks ravi ji, You always appreciate my work and giving me the right suggestion..Thanks a lot
बहुत अच्छी और बड़ी मनभावन नज़्म है,
बधाई ….
कहता यूं ही खुद से हारा,
कवि है वो, ना कोई बेचारा,
कब कैसे क्यूँ वो हारेगा,
जिसने सब कविता में उतारा ….!.
@Vishvnand, Thanks Sir Ji …
बहुत खूब! दिल के सब भाव कविता में उतार दिए हैं, वाह!
@parminder, Thanks Parminder Ji…
सुंदर रचना.
@neeraj guru, Thanks Neeraj Ji
again an awesome one friend,,,,superb.
@prachi, Thanks Prachi, Just waiting for your new poem…