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कभी कभी दिल से बहती है,अश्को की एक लम्बी धारा

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Crowned Poem, Hindi Poetry
कभी कभी दिल से बहती है, अश्को की एक लम्बी धारा   
कैसे दिखाऊ मै तुमको वो दरिया जिसका नहो कोई किनारा  ||
 
जबसे मुझसे रूठ गई तुम, हँसी नही होठो पे यारा
एक तुम ही थी हमदम मेरी, नजरो का तुम थी नजारा ||
 
कभी कभी मुझपर हंसती है, मेरी किस्मत कह मुझको बेचारा
कैसे बताऊ मै तुमको, कैसे हू मै,  ख़ुद से हारा ||
  
जहा तुम मुझको छोड़ गई थी, वही खड़ा हू अबतक यारा
तुमसे ही जन्नत थी मेरी, तुम ही थी जीने का सहारा ||
 
कभी कभी सीने मे जलती है, यादो की बुझती शरारह  [sharaarah =chingaari]
कैसे समझाऊ मै तुमको, की बिन तुम नही अब मेरा गुजारा ||
 
जो तुम मुझको दिखा गई थी, नहीं दिखे अब वो सितारा 
तुमसे ही रौशन थी नजरे, तुम ही थी बातो का इशारा ||
 
 

16 Comments

  1. dr.paliwal says:

    कभी कभी मुझपर हंसती है, मेरी किस्मत कह मुझको बेचारा
    कैसे बताऊ मै तुमको, कैसे मै हू, ख़ुद से हारा ||

    Bahut sundar, har pankti lajawab…..

  2. ajusal says:

    Man ko chu gayi yeh kavita….Ek dum lajawab! 🙂

  3. Raj says:

    Nice one Vijay.

  4. Ravi Rajbhar says:

    Waah क्या khub …..jabab नहीं आपका…..

  5. Vishvnand says:

    बहुत अच्छी और बड़ी मनभावन नज़्म है,
    बधाई ….
    कहता यूं ही खुद से हारा,
    कवि है वो, ना कोई बेचारा,
    कब कैसे क्यूँ वो हारेगा,
    जिसने सब कविता में उतारा ….!.

  6. parminder says:

    बहुत खूब! दिल के सब भाव कविता में उतार दिए हैं, वाह!

  7. neeraj guru says:

    सुंदर रचना.

  8. prachi says:

    again an awesome one friend,,,,superb.

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