« कभी कभी दिल से बहती है,अश्को की एक लम्बी धारा | Time still moves… » |
मेरा कौन ???
Hindi Poetry |
कृप्या उपयुक्त शीर्षक सुझाएँ
मिलने पर
“कैसे हो” पूछने वाले
लोग बहुत हैं
पर चुरायी नज़रों से कहे
“अच्छी हूँ” में
सच का अंश तोलने वाला
कोई नहीं!
सिर्फ एक maggi खा
दिन गुजार देती हूँ
यह देख
गुस्सा करने वाले
लोग बहुत हैं
पर टिफिन में
एक रोटी एक्स्ट्रा लाने वाला
कोई नहीं!
हर कदम पर
कुल, मर्यादा, रिश्ते, समाज, धर्म, संस्कृति,
की दुहाई दे दिशा निर्देश देने वाले
लोग बहुत हैं
पर प्यार से “मेरी खातिर” कह
मुझे रोकने वाला
कोई नहीं
प्रश्न साध
मेरी खामोशी का कांच
तोड़ देने वाले
लोग बहुत हैं
पर मेरी खामोशी बाँट
प्रश्न की ज़रुरत ही
नष्ट कर देने वाला
कोई नहीं
जीवन में मेरी घटती आस्था देख
लक्ष्य, स्वप्न, मंजिल, सार्थकता, अस्तित्व,आदि पर
घंटों ज्ञान देने वाले
लोग बहुत हैं
पर विश्वास भरी एक निगाह से
जीने की वजह दे जाने वाला
कोई नहीं
सच,
मेरे पास ………लोग बहुत हैं!
पर,
मेरा ……….कोई नहीं !!
lovely poem Vartika. & so true
In todays world everyone has so much around, yet is alone
par fikar not…koi zaroor en sab ko door karneywalla mil jayey ga soon 🙂
Bahot khoob vartika… Maggie wali line bahot khoobsurat hai… mera matalab puri kavita bhi achi hai 🙂 10/10
Certainly not upto your mark
your usual style is completely missing
consider a re-write
@narendraraghunath,
I mean kindly consider a re-write
@narendraraghunath,
vartika,
I think all others have a different take on this piece. Probably I must be wrong on popular perceptions.
My intention was certainly not to hurt your feelings or writing, You always maintain a beautiful way of narration in your write up. I found it is completely missing in this piece. A sort of casual approach. Just thought of highlighting it. that is all.
so jforget it and chill.
expecting lot more better pieces.
best wishes
बहुत अच्छी रचना है, उत्तम दर्जे की, पर आप तो इससे भी उत्तम दर्जे की कविता लिखते हो इसीलिये कुछ लोगो को ऐसा जरूर लगेगा .
पर अपने आप में ये रचना बहुत ही खूबसूरत है
“यहाँ कौन है मेरा ” शायद शीर्षक ज्यादा उचित हो ….
सचिन देव बर्मन दा का गाना ” यहाँ कौन है तेरा, मुसाफिर जायेगा कहाँ ” याद आ गया.
पर आपको नहीं लगता ऐसी भावना जब कोई, कोई कारणवश, अपने आप में बहुत केन्द्रित होता है, तब ही उभरती है. मेरा कौन है कहने की जगह मैं किन सब का या किन सबकी हूँ यह विचार करना ज्यादा उचित है
कविता पढ़कर ये भावना जरूर उभरी
अच्छी रचना वर्तिका, हालाँकि जो वजन अक्सर तुम्हारी रचनाओं में होता है, उस से थोड़ा कम महसूस हुआ; पर शब्दों का चयन बहुत अच्छा लगा.
vartika ji
bahut acchi lagi aapki rachna
bohat achhi rachna hai,,,,Dil ke jazbaat jab kaagaz par utar jaate hain,,,,To Phir sochna nahi chahiye,,,,,Ke kaise likh diyaaa,,style Mein likha hai yaa nhain,,,log kyaa sochenge!!!!!
Baaki saari baaton par dhyaan naa do,,Jaise Dil kare likhte rehnaaa,…
All the best and keep writing
Desperation and lonliness झलक रहे हैं हर पंक्ति में | बन्दा जब कहीं कोई साथी नहीं ढूँढ पाता तब शायद ऐसे भाव महसूस करता है | आप यहाँ ” तन्हा मैं” भी इस्तेमाल कर सकते हो |
Vartikaji…..
Sirf ek Rachna ki drishti se dekha jaye to bahut sundar rachna hai….
Parantu jahan tak aapke swabhav ki baat hai, aap kafi “Aashavadi” hai,
Aur aap ki kalam se nirasha ki yah jhalak mujhe chaunka gai….
Par yakin maniye “Nirasha” ka bhi apna ek maja hota hai…..
Aisa nahi hota to “Mukesh Ji”(singer) ke geet itne popular nahi hote…..
वर्तिका जी
बहुत गहन और भावपूर्ण रचना है !
कविता नहीं,सच की बयानी है यह,चूँकि तुम्हारा एक फॉर्मेट पढ़ने वालों के मन में बैठ चुका है इसलिए ऐसा लगता है.अपने ज़ोनर से बाहर आना एक मुश्किल कार्य है.अपने फॉर्मेट में तो तुम उस्ताद हो,पर यह रचना भी कुछ कम नहीं है,ऐसा एक सच हम सबके साथ साए की तरह चलता है.मुझे रचना पसंद आई,पर यह टिप्पणिया भी सकारात्मक तरीके लेना.
Probably every one one the earth is alone..its you fight and you have to stand against it 🙂
gr8
तुम्हारी कविताओं के संकलन में ये कविता अनमोल मोती की तरह चमकती प्रतीत होती है. बहुत अच्छी है. मुझे ऐसा लगता है कि मेरे मन की कवितायें तुम्हारी कलम से निकलती है.