« इश्क के दीवानों मे, अपना भी एक नाम हो… | A dreamer, woebegone » |
क्या इसी को कहते आज़ादी
Crowned Poem, Hindi Poetry |
(देश आजाद अवश्य हुआ है किन्तु आम आदमी आज भी गुलाम है ,पहले अंग्रेजों का गुलाम था . आज अराजकता फैलानेवाले असामाजिक तत्वों का.ऐसी आज़ादी की कल्पना हमारे अमर शहीदों ने नहीं की थी अगर वो जानते की आज़ादी की दशा ये होगी तो वे अपनी कुर्बानी देने से पहले कई बार सोचते.)
भय,लूट,आतंक , अपहरण , देश देख रहा बर्बादी
आम आदमी पूछ रहा क्या इसी को कहते आज़ादी
गुंडों की तो बन आयी है,जहां तहां हुडदंग करें
सहम गयी हैं जनता इनसे, सबकी शांति भंग करें
बीच सड़क ये फिकरा कसते ,बेटी संग चाहे माँ चले
भय नहीं भाई पिता का इनको ,छेड़छाड़ ना इनकी टले
मार पिटाई पेशा इनका ,भारत में फलफूल रहा
असमंजस झूले में अब तो आम आदमी झूल रहा
जनता तो अब भी गुलाम है गुंडों को मिली आज़ादी ….
सफ़र चैन से कर नहीं सकते ,अब तो ऐसा हाल हुआ
चोरी-चकारी बढ़ गयी इतनी ,सबका हाल बेहाल हुआ
मौका पा बस और ट्रेन में ,लूटपाट की जाती है
करो सामना गर डाकू का ,मारकाट मच जाती है
चेन गले में डाले महिला ,खुले आम नहीं चल सकती
कब गर्दन में पड़े झपट्टा ,वो बचाव नहीं कर सकती
चोर डकैत सब जगह घूमते बढ़ी है इनकी आबादी …
जीवन का नहीं रहा भरोसा ,कब अगवा हो जाये हम
बिना फिरोती छूटे उनसे ,रहा नहीं अब इतना दम
पुलिस से कुछ उम्मीद करे, ये लगता ना मुमकिन काम
पुलिस को दे या उनको चुकाए ,किसकिस को दे अपने दाम
पैसे का सब खेल है सारा , मिली भगत ने बतलादी .
भ्रष्टाचारी लूट रहे हैं, देश को दोनों हाथों से
नेता अपने व्यस्त हो रहे भाषणबाजी बातों से
बिना दिए कहीं काम ना बनता ,रिश्वत का बोलबाला है
नौकरशाह खुद करोड़पति और लखपति उसका साला है
नेता को नहीं फुर्सत मिलती, रिश्वत और कमीशन से
मंत्री अपनी रेट मांगता ,दिखलाके पोजीशन से
नोकरशाह की बढ़ी सम्पति,फटेहाल है फरियादी ….
कौन वीर कुर्बानी देता ,ऐसी आज़ादी मिले जहां
——————–सी के गोस्वामी (चन्द्र कान्त) जयपुर
बहुत सुन्दर, लगता है जैसे सब दुःख दर्द और निराशा की भावनाओं को समेटे हुए ये सीधी अंतर्मन से अपने आप शब्दरूप लिए उभरी ये अति सुन्दर और परिपूर्ण कविता है. इस कविता को ह्रदय से आदरयुक्त प्रणाम.
इसके आगे कुछ बोला या लिखा नहीं जाता, बस मन ही मन चिंतन करने को जी चाहता है.
इस पोस्ट और रचना के लिए चंद्रकांत जी मेरा हार्दिक प्रणाम.
P.S. इसे edit कर font की size को बढाना जरूरी लगता है
@Vishvnand,
आपकी राष्ट्र के प्रति भावनाओं को फिर एक बार सलाम .आपके विचारों को जानने के बाद लगता है कि आप जैसे ही टीकाकार मुझे प्रोत्साहन देने में सहयोग कर रहे हैं.
यहाँ तो ये हाल है कि आप एवं राकेशजी तथा डॉ.पालीवाल के अलावा अन्य लोगों में राष्ट्रभक्ति रचनाओं के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए.
सच तो यह है कि आम आदमी को नहीं,बल्कि गुंडे बदमाशों को आज़ादी मिली है-वो भी कुछ भी कर लेने की
@C K goswami
आपका कमेन्ट के उत्तर का शुक्रिया.
पर मैं आपके इस कथन का की अन्य लोगों को राष्ट्रभक्ति रचनाओं के प्रति रूचि नही है समर्थन नहीं कर सकता. बहुत members अपने अपने काम में व्यस्त रहते हैं और site को उतना समय नहीं दे सकते या थोड़े समय में कमेन्ट भी नहीं कर सकते. कई तो हिंदी interest लेकर सीख रहे हैं. उनकी देशभक्तिपर रचनाओं की चाह और कल्पना पर टिप्पणी करने का हमें तो अधिकार नहीं हो सकता ….
@Vishvnand, श्रीमानजी,मैंने केवल इतना ही लिखा था कि जो रूचि ऐसी रचनाएँ पढने में होनी चाहिए वैसी लोगों में दिखलाई कम दे रही है .मैंने तो उदाहरनार्थ कुछ नामों का उल्लेख कर दिया था जिनमे रूचि देखि गयी ,अब उन सबके नाम तो उल्लेखित नहीं किये जा सकते जो रूचि रखते हैं .आज भी राजेश गुप्ता”राज”,रवि राजभर ,सुशील सरना,अश्विनिकुमार्जी ,पंचरतन हर्ष एवं राजदीप भट्टाचार्यजी जैसे कवी हैं जिनसे मुझे प्रोत्साहन मिलता रहा है .वैसे भी’ पसंद अपनी अपनी ख्याल अपना अपना ‘होता है . विश्व नन्द जी ,डॉ.पालीवाल और राकेशजी का नाम तो प्रतीकात्मक था. रूचि तो रूचि है अब चाहे ज्यादा हो या कम या बिलकुल कम . किसी पर रूचि थोपी तो नहीं जा सकती. आपके विचारों और टिपण्णी पर दिल से शुक्रिया
After reading the poems, I have left no option but to superscribe 5 stars
more.
@ashwini kumar goswami, aapki sarahna hi wardan hai .dhanyawad
आदरणीय चंद्रकांत जी, रचना पडी- दिल को छू गई, अत्याचार,भ्रष्टाचार,आतंक,लूटपाट,अनादर,रिश्तों का सरे आम चीर हरण,स्वार्थ के पोधों का दिन दूनी रात चौगनी गति से विकास होना, कुर्बानी के पन्नों की अनदेखी कर शहीदों को दिन ब दिन विस्मृत कर नई संस्कृति से स्वयम को अलंकृत करना
ही शायद आज मतलब आज़ादी का बन गया है, सरे आम सामाजिक मर्यादाओं को भंग करना ही आज़ादी बन गया है-आज ग्लेमर का बोल बाला है-अब शहीदों के किस्से किसी राष्ट्रीय पुस्तकालय की शोभा बन गये हैं-क्या कहूं चंद्रकांत जी अब हमारे इन विचारों की भी कहाँ कीमत है-बस लोग पढ लेते हैं,वाह वाह कर लेते हैं और अपने अपने काम में लग जाते हैं-लगता है वर्तमान प्रज्वलित अग्नि के आगे हमारी आज़ादी की मशाल एक मोमबती बन कर रह गई है-इसका महत्व किताबों में सिमट कर रह गया है-जरूरत है इसे किताबों से निकलकर अपनी आत्मा में डालने की,उस मिशन को समझाने के जिसके लिए वीरों ने अपने प्राणों को त्याग दिया-मैं आपको इस रचना के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ – क्षमा चाहता हूँ कि कार्यालय व् अन्य व्यस्तताओं के कारण मैं ये रचना पड़ नहीं सका – पुनः बधाई
@sushil sarna,
dhanyawad.
Bahut hi sundar aur upyukt rachna hai sirji…..
Dard bhi ho raha hai desh ke sahi halaton ka chitran padhkar…
Fir bhi ummid par duniya kayam hai, Sudharon ka prayaas ham sab milkar karen to sab smbhav ho sakta hai…..
Aapki is sundar rachna ke liye aatma ki gahrai se badhai…..
@dr.paliwal,
desh ke prati aapka lagaav kam nahi hai .koi tan se ,koi man se ,koi dhan se aur koi lekhan se yogdan deta hai ,sabhi ka yogdaan apni jagah sahi hai.
sabse bada yogdaan hai aisi rachna ko protsahit karnewalon ka ,unme se ek aap hain. dhanyawad
Bahut sunder.
@medhini, धन्यवाद्
चन्द्र कान्त जी, आपकी रचना में आज का सम्पूर्ण चित्रण है. यह सच भी है और दुःख भी देता है पर सच तो सच है न. अगर हमारे देश में नेता और पुलिस भ्रष्टाचार त्याग दें तो बाकि सब समस्याएं खुद-ब-खुद सिमट जाएँगी.
@Raj, राज आपके विचार मेरा उत्साह में लगातार वृद्धि कर रहे हैं.धयवाद
अच्छी अभिवक्ति है सर जी …काफी अच्छा लिखा है …
@THE LAST HINDU, rachna par ki gayee tippani ke liye shukriya.
आप की sashakt rachana की jitani tarif की जाये कम है आज aajadi का क्या यही मतलब है
@Panch Ratan Harsh, aapki prashansa se mujhme aur bhi utsah paida ho raha hai.
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@yogeshwarsharma,
लिखी कौन सांकेतिक भाषा ,समझ न पाया शर्माजी
आप बतादो क्या आशय था ,मैं कमेन्ट नहीं समझाजी