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क्या बेवकूफी, क्या समझदारी……!
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इस गणेश चतुर्थी के पर्व पर, जो एक पुरानी प्रथा, सब जनों को प्रभुप्रेम में जोड़ने की, आज तक प्रचलित है, कुछ कारणवश, मुझे ये मेरी एक पुरानी रचना, कुछ बदलाव के साथ, पोस्ट करने पर मजबूर का रही है ….
क्या बेवकूफी, क्या समझदारी……!
एक अलग सा ये ज़माना है,
कहते हैं, “नया ज़माना है,
तकनीकी युग है, अभी और बहुत दूर जाना है,
काफी फालतू और गलत है, जो भी कुछ पुराना है,
पुराने विचार, संस्कार और रस्मो को मिटाना है,
नयी संस्कृति है, सब कुछ नया होना जरूरी है.”
समझ नही आता, हमें आख़िर जमाने में क्या पाना है,
वो क्या असली चीज़ें है, जिसके पीछे हमें भागना ही भागना है,
और ये सब चीजें पाकर , हमें आख़िर क्या करना है.
असलियत में इनके मन की क्या अभिलाषा है,
सार्थक जीवन की इनकी क्या परिभाषा है.
जीवन से और जीवन में इन्हे क्या पाना है.
इतने व्यस्त हैं, ये सोचना ही जरूरी नहीं है ….!
भूल जाते है, आज जैसा जीवन बचा है,
सब पुराने ही की देन है
अबतक सब कुछ पुराने ने ही तो सम्हाला है,
अगर ये सब ग़लत होते, तो हम सब कहाँ होते,
हैवान थे, हैवान ही रहते, या और भी बत्तर होते,
जो रीत रिवाज उभरे हैं, पुराने अनुभव में ही उभरे हैं,
उस उस समय की व्यवस्था सम्हालने, बनते, बदलते, चले हैं,
एक प्रकार की उपयुक्तता और सातत्यता उनने संभाली हुई है,
और उनने अपना काम भली भाँती निभाया है,
उन्हें आज सब गलत कहना कैसी समझदारी है
जो कुछ त्रुटियाँ रही हैं, उनमे दोष तो मानव स्वभाव का है,
अब आप जो कुछ नया लाना चाहते हैं,
पुराने को फ़ेंक कर,
उसकी, मानव और मानव जीवन के लिए उपयुक्तता,
क्या अच्छा है, क्या बुरा है,
वो तो समय ही बताने वाला है,
आज तो सिर्फ़ अनुमान ही है,
तुम देख ही रहे हो,
आज अच्छे का भी बहुत बुरा इस्तेमाल है.
हाँ, बदलते समय में, नए विचार लाना,
कुछ पुराने विचारों और रीति रिवाजों को बदलना,
या उन्हें और उपयुक्त बनाना जरूरी है,
पर हर पुरानी चीज़ को, अपनी मनमानी के लिए,
ग़लत कहना, उसकी निंदा करना, हँसी उडाना,
मेरे ख्याल में, आज की सबसे बड़ी बेवकूफी है,
उतनी ही जैसे सब पुरानी चीजों को बढिया कहना,
अडे रहना, नही बदलना, भी बेवकूफी है.
इस सीधी सी बात को,
कैसे आज और कल के लोग समझेंगे,
और उपयोग में लायेंगे,
इसी में सबकी और पर्यावरण की भलाई है,
वरना आगे सब की धुलाई ही धुलाई है …….!
मेरा ये सब लिखना भी शायद बेवकूफी है,
समझदारी भी हो सकती है,
सब आप पर निर्भर है ……….!
——” विश्व नन्द “—-
सही स्थिति और सही वर्तमान भ्रमपूर्ण भावना को उजाकर करते हुए आधुनिक
जीवन सचेत होने का बहुत ही प्रभावशाली सन्देश है ये ! चेतना कुच्छ आजाये इस
आशा में उपदेश है ये ! ५-सितारा लेखन है ये, यद्यपि थोड़ा संशोधनीय है, लेखन में
सम्यक लय लाना थोड़ासा कुछ सोचनीय है !
@ashwini kumar goswami
आपकी प्रतिक्रया का बहुत प्रशंसक हूँ. हार्दिक धन्यवाद.
प्रतिक्रया की अंतिम पंक्ति के बारे में बहुत कुछ और जानने की जिज्ञासा है और उसके लिए आपसे जल्द ही अलग से संपर्क की अभिलाषा है.
A lovely poem on today’s situation,
condition and truth. Thank you, for
sharing.
@medhini
You are welcome & thank you so very much for your comments.
बेवकूफी मूर्खता और समझदारी अक्लमन६दि
मूर्खता बेवकूफी और समझदारी अक्लमंदी है
ये कविता नए और पुराने की जुगलबंदी है
हर आदमी का अपना अपना दृष्टिकोण है
कोई एकलव्य है तो कोई द्रौन है
अपनी बात सही कहने के लिए ,दूजे को गलत न बताओ
अपनी ख़ुशी के लिए ,दूसरे को आतंकित करके न सताओ
आपका कविता प्रस्तुत करना ही समझदारी है
पढने से चूके जो कविता उसकी भूल भारी है
काव्य में प्रतिक्रिया को धारण करें
@c k goswami
आपकी प्रतिक्रया का तहे दिल से शुक्रिया.
बात ये है की युवा और बुजुर्ग दोनों अपनी अपनी बात को ठीक समझते हैं पर दूसरे की बात को ठीक से समझने की कोशिश नही करते इसी कारण कविता कहती है;
पर हर पुरानी चीज़ को, अपनी मनमानी के लिए,
ग़लत कहना, उसकी निंदा करना, हँसी उडाना,
मेरे ख्याल में, आज की सबसे बड़ी बेवकूफी है,
उतनी ही जैसे सब पुरानी चीजों को बढिया कहना,
अडे रहना, नही बदलना, भी बेवकूफी है.
विश्व नन्द जी, यह रचना भी अच्छी है और इसके द्वारा दिया सन्देश भी. पर समस्या यह है कि आजकल हर एक को ठोकर खाकर संभालना ज्यादा अच्छा लगता है (वो भी अगर संभल सके तो).
@Raj
Thanks for the comment. You are very right.
Most people today feel they have no time to think coolly & wisely about what is good and what is bad for life and are thus they are buying experience every time at a great cost, squandering at each instance a good part of their valuable life and becoming poppers (rather than rich with experience & wisdom which in effect is the meaning of life)..
Bahut khoob sirji…..
sundar rachna, bahut achchha sandesh, “aaj” par kavita…..
@dr.paliwal
आपके प्रशंसायुक्त कमेन्ट के लिए हार्दिक धन्यवाद .