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ज़हर खुरानी (विश्वासघात)
Hindi Poetry |
ज़हर खुरानी (विश्वासघात)
(बार बार हिदायत के बाद भी हम अनजान लोगों का दिया खाद्य
पदार्थ सेवन कर लेते हैं ,और जहरखुरानी को बढावा देते हैं )
बैठ ट्रेन अनजान यात्री , दूरी बनाये रखते हैं
गंभीर दिखा के इक दूजे को, पहले खूब परखते हैं
फिर नाम और व्यवसाय जान ,बातों को बढाया जाता है
शहर कौन जाना है किसको ,अनुमान लगाया जाता है
इस तरह निरंतर बातों से बात बढाई जाती है
आपस में जो दूरी थी फिर उसे घटाई जाती है
शहर में इक दूजे अपना ,व्यवसाय बताने लगते हैं
कितनी कमाई हो जाती है ,उसे जताने लगते हैं
बातें बच्चों की करके ,फिर होती है शिक्षा चर्चा
फिर बाते शादी दहेज़ की, होता है कितना खर्चा
इधर उधर की बात बाद में मनुहारी का दौर चले
नमकीन नाश्ते से लेकर ,सब्जी रोटी का कौर चले
मेल मिलाप बढा के फिर जलपान का पूछा जाता है
टिफन खोल इक खाना खिलाये, दूजा चाय ले आता है
दोनों आपस में बतियाते ,चीनी दूध घुल जाते हैं
यहीं पे आके कुछ पापी ,विश्वास पे ज़हर मिलाते हैं
चाय के संग लाये बिस्किट को प्रेम से बांटा जाता है
विश्वास में लोगों को, कैसे फिर जम के लूटा जाता है
चाय और बिस्किट खा के बेहोशी, सर जब छा जाये
माल उठाया चंपत हो गए ,बीच स्टेशन में भग जाएँ
आया होश तो पता चला विश्वास में सब कुछ लुटवाया
विश्वास ना करो अनजाने पे ,आज समझ में ये आया
रोज रोज ऐसी घटनाएँ ,हर स्टेशन पर होती हैं
बस में होते यही हादसे , जनता लुट के रोती है
बिन हथियार के लूटपाट की ,घटना नहीं पुरानी है
अख़बारों में पढने मिलता ,ये वो ज़हरखुरानी है
सावधान मैं कर दूँ तुमको ,गैर के झांसे ना आना
कोई गैर खिलाये कुछ भी,कभी भी उससे ना खाना
बात ये तुमने गाँठ बांध ली तो ना कभी पछताओगे
कितनी भी तुम करो यात्रा ,कभी ना लुटने पाओगे
————सी के गोस्वामी (चन्द्र कान्त )जयपुर
इस कवियों के समूह में आप ही एक ऐसे कवि हैं जो नए नए चुनिन्दा विषयों पर व्यावहारिक कवितायेँ लिखते हैं यही वजह है की आपकी कविताओं का मैं हर दिन इन्तेज़ार करता हूँ किन्तु पाता हूँ उन्हें दो तीन दिन के अन्तराल में. स्वयीन फ्लू,क्रेडिट कार्ड ,जांच को आंच नहीं के बाद आम लोगों से जुडी ये कविता फिर एक नयी सावधानी बरतने की और इशारा करती है.4staar तो इसे दिए जा ही सकते हैं .
@Panch Ratan Harsh,
आपका अगर यूँ ही प्रोत्साहन मिलता रहा तो आगे भी इसी तरह की रचनाएँ प्रस्तुत करता रहूँगा.
बहुत सुन्दर और उपयुक्त सावधानी समझाने वाली रचना है
इस पोस्टिंग और रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद और बधाई
आज की जीवनशैली का ये बड़ा दुर्भाग्य है कि जहाँ कहना चाहिए कि जीवन में आनंद लेने के लिए कुछ पर तो विश्वास करो, हमें कहना पङता है कि जीवन में रहने के लिए किसी पर भी विश्वास मत करो. ये कैसा वक्त और कैसा माहौल आन पडा है ….?.
@Vishvnand, आपकी बधाई स्वीकार करते हुवे आपसे निवेदन करूँगा की भविष्य में भी मेरी रचनाओं पर अपने विचार व्यक्त करते रहे क्योकि वरिष्ठता और अनुभव का किंचित मात्र सहारा भी अगर किसी को मिल जाये तो वह कहीं पर भी मात नहीं खाता
BADI KHUBI SE AAPNE SABHI KO UPYUKT SAVDHANI BARTNE AUR SACHET KARNE KA SAFAL PRAYAS KIYA HAI……
ACHCHHI RACH KE LIYE BADHAI…..
@dr.paliwal, दुनिया में हर आदमी सतर्क और सावधान रहता है किन्तु विश्वास ही इन्सान को डगमगा देता हैऔर विश्वास करना ही आदमी की कमजोरी है जिसका लाभ समाजविरोधी तत्व उठाते हैं.यही कहने का छोटा सा प्रयास था मेरा.
आपने पर रचना अपने विचार व्यक्त किये इसके लिए धन्यवाद्.
ek aur behtareen rachnaa C k goswaamiji dwaara Janhit main jaari
“मेरी तो हो गयी ये रचना ,जनहित में अब जारी
कब समाज का भला करोगे ,अब है तुम्हारी बारी”
राकेश जी धन्यवाद्.आज मुझे ख़ुशी मिली आपकी रचना को उचित सम्मान और उपयुक्त स्थान मिला देख कर.इससे ज्यादा ख़ुशी मिली जब मुझे अनुभव हुवा की निर्णायक कविता पर की गयी समीक्षा पर भी विचार करते हैं.
चन्द्रकान्त जी, एक अलग सा विषय लेकर उस पर रचना लिखा आपकी एक खासियत रही है. और तकरीबन हर रचना में एक सन्देश रहता है. बहुत सुन्दर.
@Raj, आपका प्यार और सराहना मुझे नए से नए विषय पर लिखने के लिए प्रेरित करती है. इसी तरह प्रेरणा और प्रोत्साहन के श्रोत बने रहें. .
आदरनीय चंद्रकांत जी, दैनिक आम समस्याओं के प्रति जन साधारण को सजग करती आपकी रचना वास्तव में प्रशंसनीय है-समाज के प्रति रचनाकार के उतरदायित्व को भी ये रचना इंगित करती है – मेरी और से हार्दिक धन्यवाद
@sushil sarna, सुशीलजी आपकी टिपण्णी पढ़ कर कुछ यूँ लगा जैसे अपना ही कोई अपने को प्रोत्साहन दे कर सामाजिक मुद्दों पर लिखने की प्रेरणा दे रहा है. धन्यवाद्.
आप अपनी कविताओं में इतना सजीव चित्रण करते हो जैसे लगता है आपने इन घटनाओं को करीब से और सामने होते देखा हो .जहरखुरानी कविता में कितना सजीव वर्णन आपने किया है लगता है अपना ही कोई हमको सावधान कर रहा है.
आपकी क्रेडिट कार्ड कविता भी मेरे कई दोस्तों को पसंद आयी थी.
इसी तरह की रचना की आगे भी प्रतीक्षा रहेगी.लिखते रहिये और लोगों को सावधान करते रहिये
@Panch Ratan Harsh, आपकी भावनाओ का ख्याल रखते हुवे शीघ्र ही एक रचना पेश करूँगा जो आम गृहणियों और जवान लड़कियों से सम्बंधित है .घर के मालिक के ऑफिस जाते ही फोन की जो गुमनाम घंटियाँ बजती हैं ,उसी से सावधान करनेवाली ये रचना होगी.पढ़के अवश्य आनंदित हो कर लाभ उठाये.
Goswami Sir absoutely correct.
After reading this realistic poetry each incident feel truly that what happen in train Or bus journey.
Very Nice.
@Raj Pandey, dhanyawad pandeyji ,kavita par dedh saal baad bhi sahi,aap jaise kadradano ne nazae to daalee.ek baar phir se shukriya.