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दशानन
Hindi Poetry |
दशानन
उसके धड़ पर दस मुख ही क्यों रहते हैं
नही समझ में हमको कभी भी आता था
न ही हमको कोई यह समझाता था
पहन मुखौटा शातिर लोग रहते हैं
चेहरे पे चेहरे लगा कर मिलते हैं
देखा, जाना, सुना, पढ़ा और समझा था
कई दफा इस बात को खुद परखा था
फिर हुआ सामना मेरा इक हैवान से
जब मैने की तुलना उसकी इनसान से
हुआ दंग मैं देख कर उसके चेहरे
एक नही था, कई-कई थे उसके चेहरे
जब मिलता था वह किसी भी शख्स से
खूब योजना बना के चलता दिमाग से
हर बार दिखाता था वह अपना नया रंग
चेहरा नया, नया रूप और नया ढ़ंग
इक-इक, दो-दो नही, कई थे उसके रंग
हर इक पर इक रंग जमाता, होता जिसके संग
जिस पर उसका जो भी इक रंग था चढ़ता
वह उसको उस रंग का था ही समझता
लेकिन जिसने भी जाना उसको करीब से
देख के होता दंग चढ़े इतने रंग तरतीब से
बात एक थी और बड़ी हैरानी की
देनी होगी दाद उसकी शैतानी की
जिस पर अपना जो भी रंग था वह जमाता
किसके संग, बात कौन सी, कौन मुखौटा
याद सभी कुछ उसको रह्ता था तरतीब से
जब जब भी मिलता था वह किसी को फिर से
करता था वह बात वही और वही मुखौटा
रहती थी उसे बात याद हो कोई मुखौटा
जिससे मिलता वह लगा कर जो चेहरा
लगता सरल इंसां को वह असली चेहरा
देख देख हैरान मैं उसके कितने चेहरे
हर चेहरे पर नये चटकते रंग भरे
फिर बात समझ में आई, यह रावण का भाई
’काली विद्या’ इसने भी है कहीं से पाई
रावण के भी तो थे दस दस चेहरे
दस मुख से था मतलब शायद दस चेहरे
दशानन का तब मैने यह मतलब जाना
दस मुँह से दस लोगों से दस बातें करना
दस चेहरों की क्षमता को रखने वाला
इसीलिए कहते रावण को दस मुख वाला
मुझको भी दिखलाया इक दिन उसने रंग
किया मौत का तांडव उसने मेरे संग
देख के उसके करतब था यमराज लजाया
मैं ही हूँ प्रह्लाद भक्त वह जान न पाया
हिरण्यकश्यप सा उसने था जाल बिछाया
तड़पा कर मुझे मारने का जतन लगाया
भूल गया वह भक्तों का रक्षक भगवान
जन्म मृत्यु पर है नही उसका विधान
अंत एक दिन उस राक्षस का होना था
तड़प तड़प कर उसको भी तो मरना था
लेकिन धरती पर उसने जो छोड़े अंश
घूम रहे हैं दुनिया में वह बन कर कंस
कैसे मिले छुटकारा इस धरती को इनसे
जिससे सच्चे लोगों का फिर जीवन हरषे
कवि कुलवंत सिंह
आप एक बहुत अच्छे कवि हैं ये आपकी कवितायेँ पढने के बाद समझ में आ गया है.
आप कविता को यदि संक्षिप्त करें तो सर्वाधिक लोग आपकी कविता का आनंद उठा सकेंगे.बड़ी कवितायेँ समझने और पढने में समय बहुत लगता है.ये एक सुझाव और सलाह है .शुभचिंतक.
अच्छी कविता और मैं c k goswami ji की टिप्पणी से सहमत हूँ.
Bahut achhi rachna hai….
वाह कुलवंत जी , क्या गजब का लिखते है आप …बहुत बढ़िया