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“भागवत” कथा…………….

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Hindi Poetry

“मुरली” बजाई “मोहन” ने, “मनोहर” सा संगीत खिला,
आज हमें “भागवत” कथा का, नया अध्याय सुनने मिला,
घर छोड़ गए “कुंवारे पितामह”, मुरझा रहा “कमल” है,
उन्हें जिन्होंने निकाला, उनका भी जाना “अटल” है,
मुसीबत जब आती है, चारो ओर से आती है,
बुरा हो वक़्त तो “आड़”, अच्छी “वाणी” भी नहीं आती है,
जो कल तक थे तारणहार, आज बने खल है,
“परिवार” के खिलाफ लड़ने का,इनमे कहाँ बल है,
नए जोश के जवानों से, “परिवार” पटरी पर आएगा?
अपनी सुहानी महक से, “वसुंधरा” को महकाएगा?
यह तो उलझी हुई,कभी न सुलझी हुई पहेली है,
लगता है “हार” के बाद “कलह”, इस परिवार की सहेली है………..

17 Comments

  1. rajdeep bhattacharya says:

    breathtaking
    outstanding sir

  2. C K goswami says:

    कांग्रेस का विकल्प खोजा था हमने जिस दल में
    वो स्वयं पड़ा तड़प रहा है आज दलदल में
    पालीवालजी बहुत खूब रचना लिखी है मजा आ गया.
    हार के बाद जो बचा ,उसे पाकवाला जिन्ना खा गया

  3. Vishvnand says:

    डॉ साहब, बहुत खूब, क्या बात है, wonderful idea
    बढिया, मान गए…

    राम ने बड़ी अच्छी बाँसुरी बजाई है
    और कृष्ण अब वनवास को चले हैं …
    Opposition की position को ही
    अब उनके अंदरूनी commotion से
    constipation हो गया है ,
    purgative का इन्तेजार है

    अब आगे लगता है, किसी पेढ तले
    कपडे पहन “लाल”, ” कृष्ण ” बैठे गायेंगे
    “मुरली” “मनोहर” आगे बजाते रिझाते रहेंगे
    और शायद “स्वराज” संग “अरुण” का उदय होगा

    • dr.paliwal says:

      @Vishvnand,
      Dhanyvaad sirji……
      aapne likhi panktiyan jyada majedaar hai…..

      • Vishvnand says:

        @dr.paliwal
        आपकी original idea और रचना ही इतनी मजेदार थी की रचना पढ़ कोई चलना सी मिल जाती है. यही तो कुछ original ideas और composition का बड्डपन होता है की आगे कुछ कुछ औरों को भी सूझता रहता है. इसमे असली credit आपका है

  4. medhini says:

    Athisunder kalpana aur rachna.

  5. Raj says:

    बहुत खूब योगेश जी. मान गए, किस खूबी से राजनीती को शब्दों में पिरोया है.

  6. Ravi Rajbhar says:

    वाह सर…क्या खूब कहा आपने
    आपका यह अंदाज हमें बहुत अच्छा लगता है…
    बहुत ही सुंदर रचना……..बधाई…..

  7. वाह योगेशजी,,, वैसे तो मुझे राजनीती में उतनी रूचि नहीं है पर हाँ आपकी कविता में भाजपा की कहानी समझ में आ गई…………..बहुत खूब

  8. Reetesh Sabr says:

    आज की राजनीति और राजनेता अपने छिछले कर्मकांडो से कितने ही अवसर देते हैं की कटाक्ष के पात्र बनें…इसमें कलयुगी भागवत बखान कर, रुचिकर रचना रची है डाक्टर साब! उम्मीद है नख से सर तक यह रोचकता बनी रहेगी..क्योंकि इसका रस ही व्यंग क्षण-प्रतिक्षण है…

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