“भागवत” कथा…………….
“मुरली” बजाई “मोहन” ने, “मनोहर” सा संगीत खिला,
आज हमें “भागवत” कथा का, नया अध्याय सुनने मिला,
घर छोड़ गए “कुंवारे पितामह”, मुरझा रहा “कमल” है,
उन्हें जिन्होंने निकाला, उनका भी जाना “अटल” है,
मुसीबत जब आती है, चारो ओर से आती है,
बुरा हो वक़्त तो “आड़”, अच्छी “वाणी” भी नहीं आती है,
जो कल तक थे तारणहार, आज बने खल है,
“परिवार” के खिलाफ लड़ने का,इनमे कहाँ बल है,
नए जोश के जवानों से, “परिवार” पटरी पर आएगा?
अपनी सुहानी महक से, “वसुंधरा” को महकाएगा?
यह तो उलझी हुई,कभी न सुलझी हुई पहेली है,
लगता है “हार” के बाद “कलह”, इस परिवार की सहेली है………..
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breathtaking
outstanding sir
@rajdeep bhattacharya,
THANK U VERY MUCH RAJDEEPJI….
कांग्रेस का विकल्प खोजा था हमने जिस दल में
वो स्वयं पड़ा तड़प रहा है आज दलदल में
पालीवालजी बहुत खूब रचना लिखी है मजा आ गया.
हार के बाद जो बचा ,उसे पाकवाला जिन्ना खा गया
@C K goswami,
Bahut Dhanyavaad sirji…..
Vaise aapki char line bhi bahut majedaar aur satik hai…….
डॉ साहब, बहुत खूब, क्या बात है, wonderful idea
बढिया, मान गए…
राम ने बड़ी अच्छी बाँसुरी बजाई है
और कृष्ण अब वनवास को चले हैं …
Opposition की position को ही
अब उनके अंदरूनी commotion से
constipation हो गया है ,
purgative का इन्तेजार है
अब आगे लगता है, किसी पेढ तले
कपडे पहन “लाल”, ” कृष्ण ” बैठे गायेंगे
“मुरली” “मनोहर” आगे बजाते रिझाते रहेंगे
और शायद “स्वराज” संग “अरुण” का उदय होगा
@Vishvnand,
Dhanyvaad sirji……
aapne likhi panktiyan jyada majedaar hai…..
@dr.paliwal
आपकी original idea और रचना ही इतनी मजेदार थी की रचना पढ़ कोई चलना सी मिल जाती है. यही तो कुछ original ideas और composition का बड्डपन होता है की आगे कुछ कुछ औरों को भी सूझता रहता है. इसमे असली credit आपका है
Athisunder kalpana aur rachna.
@medhini,
Dhanyavaad Medhiniji…….
@medhini,
Dhanyavaad Medhiniji…..
बहुत खूब योगेश जी. मान गए, किस खूबी से राजनीती को शब्दों में पिरोया है.
@Raj,
Bahut bahut dhanyavaad Raj ji….
वाह सर…क्या खूब कहा आपने
आपका यह अंदाज हमें बहुत अच्छा लगता है…
बहुत ही सुंदर रचना……..बधाई…..
@Ravi Rajbhar,
Thanks Dear…..
वाह योगेशजी,,, वैसे तो मुझे राजनीती में उतनी रूचि नहीं है पर हाँ आपकी कविता में भाजपा की कहानी समझ में आ गई…………..बहुत खूब
@Swayam Prabha Misra,
Bahut bahut dhanyavaad ji….
आज की राजनीति और राजनेता अपने छिछले कर्मकांडो से कितने ही अवसर देते हैं की कटाक्ष के पात्र बनें…इसमें कलयुगी भागवत बखान कर, रुचिकर रचना रची है डाक्टर साब! उम्मीद है नख से सर तक यह रोचकता बनी रहेगी..क्योंकि इसका रस ही व्यंग क्षण-प्रतिक्षण है…