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“हास-परिहास-पृथक्-परिवास”
Hindi Poetry |
“हास-परिहास-पृथक्-परिवास”
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एक धनी कन्या का हुआ प्रेमवश, किसी मध्यम श्रेणी में विवाह,
जिस परिवार में वो आई, उसमें था कठिन जीवन-निर्वाह !
पीहर था उसका धनाढ्य, उसने देखा था प्यार ही प्यार,
कुछ ही दिनों में उसने जाना, क्या होता काम-काज का भार !
सास-ससुर का डंडा चलता, सब घर सुनता था उनकी बात,
शुरू-शुरू में उसने भी जाना-पहचाना, बँटा के हाथ !
क्यों कि नई-नई थी वह, पर खेल-कूद से चुस्त थी,
अच्छा खान-पान था उसका, जिससे तन्दुरुस्त थी !
सास ने इक दिन तिरछी आँख दिखाकर उसको हिदायत दी,
८ बजे तक सुबह-सुबह, हर कमरे में झाडू लगाने की !
तत्पश्चात तुरत जाकर, अपने पतिदेव को जगाने की !
नासमझी में उसने हाँ भरदी, सारा कुछ होजाने की !
भेज बज़ार अपने पति को, ६-७ झाडू मंगवादी
हर कमरे में कील ठोक, उन पर झाडू लटकादी !
सास ने जब ऊपर बुलवाकर पूछा, क्या झाडू लगादी ?
उत्सुकता से हामी भरकर, गर्दन उसने हिलादी !
बातों ही बातों में नमक को चीनी जान चाय में डाला,
चाय की चुस्की ली जब पति ने, छूट पड़ा ही प्याला !
कपडों में भी छूटते कप से चाय गिरी बेटूक,
यह सब देखके पति रह गया एकदम पूरा मूक !
केवल लाड़-प्यार में पली, उसे किसी ने कुछ न सिखाया,
तभी तो ऐसी नादानी को, उसने यहाँ आके दिखाया !
पति को पड़ा अपने अंधे-प्रेम में अब पछताना,
पत्नी का फिर भी अब तक ही रहा रूप मस्ताना !
नादान नवेली छोड़ हवेली, छोटे से घर क्यों आयी ?
चिंतित रहते -रहते सदा पति ने अपनी दिन-चर्या बितायी !
हर-बात में नादानी पर, उसने पत्नी पीहर लौटायी,
पीहर धनी होने से तब तल्लाक की नौबत आयी !
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अश्विनी कुमार गोस्वामी !
आपके अत्यंत प्रभावशाली लेखन को पढ़-पढ़ कर मैं हमेशा ही आपकी कविताओं
के लिए उत्सुक रहता हूँ ! उपरोक्त लेखन भी उसी समान अति गहनातापूर्ण रूप से
धनी तथा निर्धन परिवारों के बीच की खाई को उजागर करने में महत्वपूर्ण है !
लेखन की प्रशंसा में ५-सितारे अंकित करना अपरिहार्य लगता है ! धन्यवाद !
आपद्वारा की गई टिपण्णी से मन प्रफुल्लित होगया, आगे-आगे और लिखने को मैं
विचारों में फिर खो गया ! हार्दिक धन्यवाद !
आपकी कविता का विषय बहुत अच्छा था और इसमें हास्य परिहास के लिए बहुत कुछ लिखा जा सकता था किन्तु आप छोटी कविता लिखने के चक्कर में इसका विस्तृत वर्णन नहीं कर पाए. एक छोटी सी पंक्ति में आपने विनोद की झांकी दिखलाई थी जिसमे रईसजादी बेटी को झाडू लगाने की हिदायत दी गयी थी ,धनी बाप की बेटी ये समझ बैठी कि भीत्तिचित्रों , कैलंडर की तरह ड्राइंग रूम और कमरों में झाडू लगाने का नया फेशन चल रहा होगा.उसके पीहर में झाडू से सफाई करने का कार्य तो नौकरानी करती आ रही थी अतः वो तो इसे ड्राइंग रूम की शोभा ही समझ रही थी.
इस एक झांकी से ही पता चलता है कि आप हास्य व्यंग्य की सुन्दर रचना लिख सकते हैं..कविता को संक्षिप्त करने की बजाय विस्तार से प्रस्तुत कर सकते तो और भी मज़ा आता.
धन्यवाद चंद्रकांत जी, कृपया आप ध्यान रखें की मैं हमेशा अपनी कविता के
शीर्षक की सीमा तक ही रहता हूँ ! अनावश्यक विस्तार से न केवल पढ़ने वालों का
समय निरर्थक ही व्यर्थ होता है बल्कि कविता के शीर्षक की परिधि का अनायास
ही उल्लंघन होता है !
@ashwini kumar goswami,
आदरणीय गोस्वामीजी मेरा संक्षिप्त से आशय यह था की आपने दो ही दृष्टान्त यथा झाडूवाला एवं चायवाला ही प्रस्तुत किये यदि इस कविता में और दृष्टान्त प्रस्तुत किये जाते तो और भी आनंद आता .
मेरा फिर कहना है कि हास परिहास का आनंद तभी आता है जब पढने को ज्यादा से ज्यादा वाकिये मिलें.कविता की परिधि का अनायास उल्लंघन करने को मैं भी पसंद नहीं करता.आपकी काव्य रचनाओं का मैं आज भी प्रशंसक हूँ.
सुन्दर हिंदी से सजी हास्य कविता, अच्छे स्तर का अर्थपूर्ण व्यंग
सुन्दर हिंदी शब्दों से परिपूर्ण, और कविता में द्रश्य वर्णन भी.
इस सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद और हार्दिक बधाई.I
धन्यवाद, प्रिय महोदय ! आपके प्रोत्साहन से ही मेरा प्रयास सुन्दर काव्य रचने
में सफलीभूत होता है !
तलाक दिला कर इस वृतांत का अंत यहाँ नहीं करवाए
,पीहर से बुलवाकर लड़की के नए वाकिये सुनवावे
आएगा कुछ और मज़ा जब ,सुनेगे उसकी नयी बातें
सास ससुर भाई भाभी ,क्या उसके मामले बतलाते
धनिक वर्ग से आयी है वो कैसी होगी यहाँ एडजस्ट
मध्यम वर्ग के संग चलेगी या करे परंपरा को वह नष्ट
भाग दूसरा लिख दे डालो ,मांग कर रहे ऐसी सब
हास्य व्यंग का दौर चला है ,चालू रखो इसको अब
————- कविवर से निवेदन
प्रिय चंद्रकांत जी, कृपया इस सम्बन्ध में मेरी पूर्व में आपकी सलाह पर दी गई
टिपण्णी को पुनः पढ़कर समझने का प्रयास करें तो ही उचित होगा ! मेरे पास
व्यर्थ में उलझने का समय नहीं है क्यों कि मैं अन्य लेखन-कार्य में अधिक व्यस्त
रहता हूँ ! इसीलिए मैं ऐसा कहता हूँ ! एक बार जो लिखा गया या प्रकाशित होगया
वह मेरा अंतिम प्रयास होता है ! अच्छा या अधिक अच्छा लगना तो अपनी-अपनी
ही दृष्टि है, मैंने जो लिख दिया वो मेरी अपनी सृष्टि है !
एक खास वैवाहिक समस्या को सुन्दर रूप में बयान करती यह रचना सच्चा अंत भी दर्शा रही है.
ऐसा ही होता है इस तरह की समस्याओं का अंत, पर तलाक से पहले एक और उपाय प्रयोग करना बचता है और वो है अलग होकर रहना, सही है या नहीं ये नहीं जानता पर तलाक से सही है इतना जरूर जनता हूँ (अगर काम कर जाये तो).
@Raj, Thanks a lot, Dear Raj. As
regards your observation for the alternative prior to divorce, I think, it is
neither advisable nor convenient for a girl (especially a rich girl) to
choose living alone. Her rich parents, too, would not allow to happen so.
The most chosen way of such a rich and silly girl leads to the path direct
to divorce, as such girls are mostly addicted to nostalgia.
I think it is the beauty and meaningfulness of this excellent poem of humor with lots of sense in it which has given rise to such discussion. The poem has beautifully described the event & happening, leaving interpretation, conclusions and what could be the proper further course of action to imagination of the readers. Different readers will perceive the event and conclusions differently. And most important is to see why this problem arose in the first place.
I know of a situation somewhat similar to this where better senses prevailed and instead of divorce, both partners & the families were able to see reason & sort out their differences through interventions of some well wishers. Both are now living together fairly happily along with parents of the boy. Of course each case has to be dealt with on its own merit.
@Vishvnand, Thanks VNG, Sir, for
your kindly accomplishing my wish. You observations are congruent to
those of mine, as I have already explicated hereinabove. However the
matter of laying down more humourous tittle-titattle is under pen and ink
apart from this poem’s link just to accomplish the wish of Pandit
Chandrakant Ji, for which kindly wait and see !
sada ki tarah sundar Hindi se saji, Majedaar rachna sirji…..
@dr.paliwal, Thanks, Dr. Saheb for
your everinspiring appraisal.