« चाँद से बेखबर उसकी, चांदनी से मिल आया हू | पोएट्री हायकू एन्ज़ा » |
मुड़ कर न देखना
Hindi Poetry |
वक़्त के इशारे पे,
नदी के इस किनारे से,
रुख़सत तो पड़ रहा है तुम्हे करना
बस इतनी सी गुज़ारिश है मेरे दोस्त
इस तरफ़ मुड़ कर न देखना
जाते हुए क़दमों की आहट को मैं सुन लूँगा
चुप चाप शायद रो भी लूँ,
पर कुछ न कहूँगा
पर अपनी आंखों में आए तूफ़ान से,
मेरे सब्र के बाँध की ताक़त को न परखना
बस इसीलिए गुज़ारिश है मेरे दोस्त
अब कभी मुड़ कर न देखना
बहुत अच्छी रचना,
मुड मुड कर देखने और पढ़कर सराहने के काबिल
बधाई
BAHUT SUNDAR, BADI MANBHAVAN SI RACHNA…….
“पर अपनी आंखों में आए तूफ़ान से,
मेरे सब्र के बाँध की ताक़त को न परखना”
behad khoobsoorti si piroye gaye ehsaas hain…. dard ko bahtu sehajtaa se sametaa hai aapne shabdon mein…. sunder rachnaa…
agrim rachnaon ki prateeksha rahegi… 🙂