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चल पडा है यात्रा पर
Hindi Poetry |
जीवन की यात्रा पर चल पडा है जो तू, ऎ पथिक
चाहे कितनी भी हो लंबी डगर,
चाहे कितने भी चुभे काँटे-कंकड़,
न रूकना थक-हारकर, चलते रहना साहस का तू बीड़ा उठाकर,
मिलेगी इसी राह पर मंजिल तुझे, ऎ पथिक ।
ज्ञानप्राप्ति की यात्रा पर चल पडा है जो तू, ऎ पथिक
चाहे किसी का व्यवहार कितना भी तुझे अप्रिय लगे’
चाहे किसी का घात कितना भी तेरे मन में आक्रोश भरे,
खोल हृदय के चक्षु, चलते रहना तू सारे द्वेष मिटाकर,
होगा इसी राह पर प्रज्वलित प्रकाश उर में तेरे, ऎ पथिक ।
आत्म्खोज की यात्रा पर चल पडा है जो तू, ऎ पथिक
झूठ-फ़रेब, आडंबर कितना ही तुझे बहकाएँ,
सुख-समृद्धि, ऎशो-आराम कितना ही तुझे लुभाएँ,
न भटकना राह से, चलते रहना थामे सत्य का दामन,
होगी इसी राह पर आत्मशुद्धि तेरी, ऎ पथिक ।
आत्मचिंतन की यात्रा पर चल पडा है जो तू, ऎ पथिक
याद कर जाने-अनजाने हुए हैं तुझसे जो दुष्कर्म,
भारी तो नहीं ये उनपर गिनती के हैं जो तेरे सुकर्म,
त्याग भोग, मोह-माया को, चलते रहना परोपकार का तू दीप जलाकर,
मिलेंगे इसी राह पर ईश्वर तुझे, ऎ पथिक ।
जीवन यात्रा में आने वाली भांति २ की प्रतिक्रियाओं का सही और सटीक
उपदेशात्मक दृष्टिकोण दर्शाती हुई इस सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !
संगीता जी ,
बड़ी ही सुन्दर, मनभावन, अर्थपूर्ण, ह्रदय को संतोष और धीरज देती हुई यह एक उत्तम रचना आपने प्रस्तुत की है
सच ही है “मिलेंगे इसी राह पर ईश्वर तुझे, ऎ पथिक ।”
इस सुशील रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद और बधाई
nice enlightening poem Sangeeta
beautiful poem
liked it
बहुत अच्छा सन्देश …
Bahut hi sundar rachna aur utna hi sundar sandesh…….
Badhai….
speechless – Sangeeta true essence of life-very nice-cong.
आप की रचना पढ़ कर नीरज का गीत याद आ गया-
चल रे चल मुसाफिर चल जब तक सांस चले!
कांटे कंकर,पानी पत्थर सब को लगा गले !
ठोकर तो है दुल्हन पांव की
पीर तीर है प्रेम गाँव की
आदि.