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महंगाई का मारा -गरीब बेचारा
Crowned Poem, Hindi Poetry |
महंगाई का मारा -गरीब बेचारा
महंगाई की मार से हुवा हाल बेहाल
चावल तो दुर्लभ था पहले गायब हो गयी दाल
गायब हो गयी दाल ,रोटी संग किसके खाए
अब तो पालक मैथी मिर्ची आँख दिखाए
भिन्डी,टिंडा और करेला कद्दू लोंकी
परवल गोभी सुना भाव, तो तबियत चौंकी
प्याज़ टमाटर मूली सबसे दूर हो गयी
खीरा खाने की आशाएं चूर हो गयी
खर्खारास हो रही गले में सूखा छाया
चिकनाहट को हर सब्जी से गायब पाया
सुना भाव गेहूं का ,कैसे हम पिसवाये
इससे तो अच्छा है , बाजरी मक्का खाएं
कैसे खाए बाजरी ?मक्का मांगे घी
ये भी सस्ता है कहाँ ? कैसे समझावु जी
रोटी रूखी खाने की ,गुड संग मिली सलाह
भाव सुना गुड का , गरीब के मुह से निकली आह
मुह से निकली हाय ,रोटी अब प्याज से खाएं
प्याज़ देखके महंगा सबके आंसू आये
इतने महंगे दाम ,प्याज को कौन चबाये
लाके धनिया आज तो उसकी चटनी खाएं
धनिया दुर्लभ पायके मनवा अपना रोये
पानी को गटका लिया ,लम्बी तानके सोये.
———-सी के गोस्वामी (चन्द्र कान्त) जयपुर
बहुत सुन्दर अर्थपूर्ण व्यंग और आज के सब्जियों के बढ़ते और बढे हुए दामो पर उत्तम प्रभावी कटाक्ष.
क्या ये बढे दामो का फायदा किसानो को हो रहा है, बिलकुल नहीं और नगण्य . ये सारे बढे दामो का फ़ायदा सब बीच के नाफेखोर दलाल और शासन ही खा रहे हैं वह भी उस पूंजी को लगाकर जो खुद की नही इन्होने बैंकों से कर्ज पर ली हुई है, और शासन पैसे खा कर चुप सब देख रहा है. हालत बहुत ही खराब है .
इस उत्स्फूर्त उम्दा और उपयुक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई और धन्यवाद भी.
अब देखना है आगे क्या होनेवाला है. नाफेखोरो को दंड और सबक मिलेगा या नहीं और कैसे .. …
@Vishvnand, ये सच है मुनाफा मुनाफाखोर ही खा रहे हैं ,इसका लाभ उन मेहनतकश किसानो को नहीं मिल रहा है जिनको मिलना चाहिए था .पर इससे आम आदमी को क्या ?लाभ कोई कमाए घाटा तो आम गरीब ही पा रहा है.धन्यवाद् श्रीमानजी -आपके विचारों के लिए.
@basanttailang bhopal, चूंकि श्री बसंत तैलंग ( मेरे साढू भाई)कुछ दिनों से जयपुर प्रवास में हैं और वे मेरा ही कंप्यूटर प्रयोग में ला रहे हैं अतः मेरे प्रत्युत्तर एवं प्रतिक्रिया में उनका नाम मुद्रित हो गया है .कृपया इसे आप मेरा ही सादर निवेदन समझे.श्री सुशील सर्नाजी,पालीवालजी,राजेश गुप्ता’राज’ एवं श्रीयुत विश्वनान्दजी को प्रतिक्रिया पर हार्दिक धन्यवाद्.
@basanttailang bhopal,
ज़रा अजब सा लग रहा है , Chandrakant जी की कविता है, कमेन्ट का जवाब basattailang जी आप दे रहे हैं … ?
लाभ कौन कमा रहा है इससे क्यूँ हमें मतलब नहीं? अगर बढे हुए दामो का असल फ़ायदा किसानो या जो फसल उगाते हैं उन्हें हो तो मध्यम वर्ग के लोंगों को बढी कीमत देने में कुछ तो समाधान हो. क्या आप मेरी बात समझ रहे हैं?
विश्व्नंद जी से सहमत, बहुत ही अर्थपूर्ण व्यंग्य.
व्यंग्य –> व्यंग.
@Raj, ऐसी सच्चाई लिखने के लिए आज के हालातों ने ही मजबूर किया है. राज जी आप बी पी एल कार्ड धारकों की हालत का इस कविता से पता लगा सकते हैं.
Bahut hi sundar chitran vyang ke rup me…..
maja aa gaya padhkar…
main sirji (V v Ji) se sahmat hun……
Badhai ho…..
@dr.paliwal, आप जैसे लोग ही सहमत हो सकते है हमारे विचारों से क्योंकि आपने विदर्भ में लोगों की गरीबी और आत्महत्याओं को करीब से देखा है. धन्यवाद पालीवालजी.
बहुत ही मार्मिक व्यंग्य आज की व्यवस्था, वर्तमान हालात पर और उसपर आम जन के बिलबिलाते जज्बातों का सजीव चित्रण और अंत में प्रस्तुत सुंदर समाधान – लेकिन देखें आंखें बंद करने से कितनी देर तक नींद आती है – है राम अब तो जमीन पर आ जरा – भटके, माया में लिपटे इंसानों को राह दिखा जरा,- ऐसी हिर्दयग्राही रचना के हार्दिक बधाई
@sushil sarna, कविता का अंत ही इस महंगाई से लड़ने का एक मात्र साधन मुझे दिखलाई दिया था क्योंकि अब पानी ही ऐसा बचा है जिसे पी कर आदमी संतोष कर सकता है.सुशीलजी आपको यह रचना पसंद आयी,धन्यवाद्.
सचमुच ,,,,,,,कुछ ऐसी ही जीवनी होती है गरीब की…..!
@Ravi Rajbhar, शहरों की चकाचौंध में चाहे हमें ये तस्वीर दिखाई न दे पर ग्रामीण अंचल और कस्बाई ज़िन्दगी में हम गरीबी को इतना करीब से देख लेते हैं कि ये सब सत्य दिखलाई देने लगता है.
CONGRATSSSSSSSSSSSSSSSS