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मुद्रा की आकर्षक मुद्रा पर महफ़िल बेहोश
Hindi Poetry |
सच के सिक्के खोटे निकले मिथ्या का माहौल
दिल वालों का दीनारों से उड़ने लगा मखौल
जाने कितने भूखों से है लिया निवाला छीन
बैंक विदेशी बात स्वदेशी अच्छे हम स्वाधीन
नौ दिन चाहे चले कि सौ दिन चलना ढाई कोस
मुद्रा की आकर्षक मुद्रा पर महफ़िल बेहोश
नित्य वार्ताएं विकास की नित्य नए मनसूबे
इस विकास की वैतरणी में जाने कितने डूबे
लाखों का पी खून पसीना चमके गाल हज़ार
बलबूते पर सिर्फ जड़ों की शाखें हैं गुलजार
सच कह उनको लाज न आती सच सुन हम शर्मिंदा
चला अगर ये स्वांग बहुत दिन कौम बचेगी जिंदा ?
गहन विचारों की शक्तिशाली और प्रभावी अर्थपूर्ण रचना,
बहुत प्रशसनीय और बहुत मनभावन .
हर दोपाई लाजवाब
इस रचना के लए हार्दिक बधाई और अभिवादन .
“लाखों का पी खून पसीना चमके गाल हज़ार
बलबूते पर सिर्फ जड़ों की शाखें हैं गुलजार”
“सच कह उनको लाज न आती सच सुन हम शर्मिंदा
चला अगर ये स्वांग बहुत दिन कौम बचेगी जिंदा ?”
thanks sir
बहुत-बहुत बढिया लिखा है| कितनी वास्तविकता झलक रही है हर पंक्ति में |
@parminder, प्रशंसा के लिए धन्यवाद .अन्य रचनाओं पर भी तवज्जो चाहूँगा -S.N.Singh