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मुद्रा की आकर्षक मुद्रा पर महफ़िल बेहोश

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Hindi Poetry

सच के सिक्के खोटे निकले मिथ्या का माहौल

दिल वालों का दीनारों से उड़ने लगा मखौल

 

जाने कितने भूखों से है लिया निवाला छीन

बैंक विदेशी बात स्वदेशी अच्छे हम स्वाधीन

 

नौ दिन  चाहे चले कि सौ दिन चलना ढाई कोस

मुद्रा की आकर्षक मुद्रा पर महफ़िल बेहोश

 

नित्य वार्ताएं विकास की नित्य नए मनसूबे

इस विकास की वैतरणी में जाने कितने डूबे

 

लाखों का पी खून पसीना चमके गाल हज़ार

बलबूते पर सिर्फ जड़ों की  शाखें हैं गुलजार

 

सच कह उनको लाज  न आती सच सुन हम शर्मिंदा

चला अगर ये स्वांग बहुत दिन कौम बचेगी जिंदा ?

4 Comments

  1. Vishvnand says:

    गहन विचारों की शक्तिशाली और प्रभावी अर्थपूर्ण रचना,
    बहुत प्रशसनीय और बहुत मनभावन .
    हर दोपाई लाजवाब
    इस रचना के लए हार्दिक बधाई और अभिवादन .

    “लाखों का पी खून पसीना चमके गाल हज़ार
    बलबूते पर सिर्फ जड़ों की शाखें हैं गुलजार”

    “सच कह उनको लाज न आती सच सुन हम शर्मिंदा
    चला अगर ये स्वांग बहुत दिन कौम बचेगी जिंदा ?”

  2. siddha Nath Singh says:

    thanks sir

  3. parminder says:

    बहुत-बहुत बढिया लिखा है| कितनी वास्तविकता झलक रही है हर पंक्ति में |

    • siddha Nath Singh says:

      @parminder, प्रशंसा के लिए धन्यवाद .अन्य रचनाओं पर भी तवज्जो चाहूँगा -S.N.Singh

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