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मेरी वापसी

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आज मैं एक गुमशुदा की तलाश में हुं,
हां मैं अपनी ही तलाश में हुं.
कहां गयी वो चंचल,अल्हड़,मुस्काती कवित्री ?
कहां गयी वो कविताओं से बातें करती राजश्री ?
खोज रही हुं फिर से जिंदगी के उलझे सवालों को,
खोज रही हुं फिर उन्हीं बहते ज्जबातों को,
पूरा करने की चाह् लिए उन अधुरे अरमानों को.
दुनिया है जो बसाई मैंने एक नई,
करना है शामिल सारी कविताओं को वहीं.
गुमसुम, गुमनाम सी राहों से मन चाहे बाहर आना,
कवियों संग फिर से कविता की महफिलें सजाना.
हां मैं भी चाहती हुं अपनी एक नई पहचान बनाना,
मैं भी चाहती हुं दुनिया में नाम कमाना,
लो आ गयी संग लेकर फिर से कविता का खजाना.
राजश्री राजभर……..

19 Comments

  1. Vishvnand says:

    बहुत खूब बहुत बढ़िया कहा है आपने……बधाई
    बहुत भाया है हमें आपका ऐसा अंदाज़ और यूं फिर आना,
    प्रभु आपको दे सुन्दर जीवन और ख्यालों का खजाना,
    और आप फिर यूं ही रचते रहें सुन्दर कवितायें, बने समा सुहाना… .

  2. dr.paliwal says:

    achchhi rachna hai….

  3. sushil sarna says:

    अपने अधूरे ख़्वाबों को पूरा करने की सुंदर अभिव्यक्ति – सच्चे दिल से किये गये प्रयास कभी धूमिल नहीं होते- रचना के लिए हार्दिक बधाई

  4. Raj says:

    सुन्दर रचना. गुमशुदा की पहचान उसके कर्मों से हो ही जाती है. जैसे एक महकता पुष्प कभी गुमशुदा नहीं हो सकता. आपकी कविताओं की गहराई और श्रेणी आपको खुद-ब-खुद मन चाहे मुकाम पर ले जा सकती है. जरूरत है, बस अभ्यास और विश्वास की. शुभकामनाओं के साथ, बहुत बधाई.

  5. Parespeare says:

    nice poem
    -:)

  6. sangeeta says:

    Beautiful poem, well-written and beautifully expressed.

  7. rajdeep says:

    welcome back
    nice poem 222222

  8. ravindra rajbhar says:

    Nice to see you again dear,nice poem,missing u lot.

  9. sanman says:

    बहुत बहुत बधाई sundar कविता के लिए. आपके पास kavitaaon का anmol khajana है. ऐसे ही लिखते rahiye.

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