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उसकी नज़रों ने है बख्शा किसको
Hindi Poetry |
कोई मुंसिफ कोई क़ातिल निकला !
जुस्तजू का ये ही हासिल निकला !
उसकी नज़रों ने है बख्शा किसको
जिसको देखो वही बिस्मिल निकला !
हमसफ़र साथ न आया कोई
खुद ही तनहा सूए मंजिल निकला !
तंज का तीर था तिरछा ऐसा
लग के दिल में बड़ी मुश्किल निकला !
इश्क का अपने तो आलम ये रहा
जब भी सोचा वो मुकाबिल निकला !
दर्द दिल खोल के बख्शा उसने
पर सुकूँ हाथ से तिल तिल निकला !
जिसका दावा था खिरदमंदी का
शख्स अक्सर वो ही गाफिल निकला !
मैं ही मुजरिम नहीं मुजरिम वो भी
बुत मुहब्बत के जो काबिल निकला !
जुस्तजू-खोज,सूए मंजिल-मंजिल की ओर,बिस्मिल-घायल,मुकाबिल-समक्ष,खिरदमंदी – ज्ञानवान होना, गाफिल-अनभिज्ञ तंज-व्यंग्य
acchi gazal hui hai sir….
@vartika, Thanks.Heard from you after a long gap.Thanks again.
Nice……. 🙂
@Ravi Rajbhar, thanks
“dhaara 302 me maara
chakoo milaa, na mili kataar,uske paas tha ik hathiyaar
aankhon se wo teer chalaati,jiski teekhee dhaar ne maara”
—–siddhnathsinghji bina hathiyaar ke hi sanhaar karte ho
aankhon se teer chalwake waar karte ho——
@c.k.goswami, Thanks for appreciation Sir.
Bahut Sundar….
@Prem Kumar Shriwastav, hausla afjai ka shukriya
A nice poem, Sidha Nath.
बहुत खूब.
भाई वह, बहुत खूब, आप तो आँखों में ही उलझ कर रह गए.
बहुत अच्छे, आँखों पर एक शेर याद आ रहा है
महफिल में बार-बार उसी पर नज़र गयी
हमने बचाई लाख पर फिर भी उधर गयी
कुछ बात तो ज़रूर है उस हसीं की आँखों में
जिस पर पड़ी उसी के कलेजे में उतर गयी
समस्त प्रशंसाओं के लिए मेरा धन्यवाद स्वीकार करें