जिंदगी की दो कश्तियाँ
जीवन के भवसागर में थीं उतरीं जिंदगी की दो कश्तियाँ,
मध्यम-मध्यम हवाओँ के बीच लहराती चलीं उनकी जिंदगियाँ.
सफर भी होने लगा था बडा सुहाना,
मौसम भी हो चला था तब बडा मस्ताना.
गा रहीं थीं कश्तियाँ लहरोँ संग प्यार का तराना,
अब संग-संग था पल-पल उन्हें बिताना.
बढती गयीं ये कश्तियाँ भवसागर के मँझधार की तरफ,
बन चुकी थीं मध्यम हवाएँ अब तुफान,
लहरोँ पर भी था गम का बढता उफान.
ली फिर जिंदगी की कश्तियोँ ने नई करवट,
सुनामी की लहरोँ ने उनकी जिंदगियाँ दी थी पलट.
जुदा हो गयीं मंजिलें उनकी,हो गयी जुदा दोनो नइया,
गिरते-पड्ते, रोते-गाते हो चली हमसफर तन्हाईयाँ.
एक नइया को मिल गयी फिर नई खुशियाँ,
नए अरमानोँ, नए सपनोँ संग नई दुनिया.
तय करने मँझधार के आगे का सफर,करने लगीं तैयारियाँ,
दुजी तो ढुंढती रह गयी अपनी ही परछाईयाँ.
मँझधार में थी छुटी जो उसकी प्रीत की नईया,
वो तो लेने लगी बीच मँझधार में डुबकियाँ.
अरमानोँ का गला घोँट छिन चुकी थीं उसकी खुशियाँ,
इस तरह थी डूबी बीच राह में प्यार की कश्तियाँ.
शायद किसी मोड पर मिल जाए वो कश्ति,
डुबते को तिनके को सहारा ही सही,
इसी आस में गुजारने लगी वो भवसागर में जिंदगी…
राजश्री राजभर…….
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मँझधार में थी छुटी जो उसकी प्रीत की नईया,
Puri kavita ki jaan hai ish line men……!
Thank u so much Raviji for ur best comment.
another great work
Thax Rajdeepji .
मनभावन कविता, सुन्दर कल्पना और विवरण.
रचना के लिए बधाई.
Thank u so much sir for ur best comments
आपकी रचना देख मुझे मेरी कविता की दो पंक्तियाँ याद आ गयीं-
मिले रोज़ तूफां नए नए कभी हमने दरिया-ए-वक़्त में
जो वफ़ा की नो उतारी थी, वो कभी की डूब डुबा गयी
बहुत खूब-एस एन सिंह
wah khub kaha aapne sir. Thank u so much for your best comments.