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तुम्हारी हँसी
Hindi Poetry |
तुम्हारी हँसी,
मेरी आत्मा के लिए
वैसी ही है,
जैसे पानी सूखे कंठ के लिए,,
इसीलिए तो,
उसे पी जाने को जी चाहे हमेशा,
ताकि
मेरी सूखी आत्मा भी खिल जाये,
जैसे
बंज़र ज़मीन खिल जाती है,
बादल की फुहार से,,
और एक राज की बात बताऊँ,
चुन लिया करती हूँ मैं,
इधर-उधर छिटक के गिरी तुम्हारी हँसी की बूंदों को,
सारा झरना एक साथ समा कहाँ पाता है मुझमे..!!
सहेज के रखा है मैंने,
उन बूंदों को,
मेरी यादों की अलमारी में,
घूंट-घूंट निकालकर पीने के लिए,
उन लम्हों में,
जब तुम नहीं होंगे मेरे पास,,
ताकि
तुम्हारे लौटने तक मेरी आत्मा
इंतज़ार करने की हालत में तो रहे…!!!!
बहुत सुन्दर और मनभावन कल्पना और रचना,
बहुत आत्मीयता से जो लिखी है,
बधाई
@Vishvnand, बहुत बहुत शुक्रिया सर जी
प्राची जी, आपकी रचना का हर शब्द सीधे आत्मा को छूता है, बहुत बढ़िया लिखा है .
@Neha, शुक्रिया नेहा…keep reading and stay connected 🙂
Wow! Shaandar. Zazbaat ka samunder hiloren leta hua nazar aa raha hai. Bahut Badhiya,Prachi ,
@vikas yashkirti, thanx a ton vikas ji 🙂
हंसी की हसीन मंजरकशी की है आपने . कलम में क़लाम की खुशबु यूँही सलामत रहे.
@siddha Nath Singh, धन्यवाद सर जी 🙂
इस कविता के भाव बहुत अच्छे हैं प्राची जी, बधाई हो.
शैलेश
@Shailesh Mohan Sahai, शुक्रिया शैलेश जी 🙂