“भिखारी बुढिया की आत्मकथा”
बचपन जवानी और बुढापा,
हर किसी के जीवन में है यह दिन आता.
माना मैं पहले भी थी गरीब ,
पर सारी खुशियाँ थी मेरे करीब.
था एक छोटा सा हमारा परिवार,
मान लिया था उन्हीं को अपना संसार.
था भले हमें जरुरी चीजों का अभाव,
पर माया लोभ से कभी न रहा लगाव.
सिखाया बच्चों को भी कम में करना जीवन व्यापन,
मजदूरी कर घर-घर,माँजा जुठा बर्तन,
की उनकी हर इच्छा पूरी,मारकर अपना मन.
कर दिया सारा जीवन बच्चों पर समर्पण,
लिखा पढा उन्हें अच्छा इंसान बनाया,
स्वावलंबी बना उन्हें जीना सिखलाया.
पर घर बसा सभी ने,आज हमें भुलाया,
बेकाम चीज समझ हमें ध्क्के मार ठुकराया.
गरीबी के दिनों में भी बच्चों को भुखा न सोने दिया,
आज बहु-बेटों ने आधी रोटी को भी तरसाया.
मन को तोडा बच्चों ने,तो तोडा शरीर को बीमारी ने,
छोड दिया गंभीर हाल में एक स्टेशन पर.
अधमरा बेहोश शरीर तरस रहा था एक बुंद पानी को,
देखता जो भी फेंक देता तरस खाकर पैसे दो-चार,
दया थी काफी नहीं,थी हमें दवा और अपनों की जरुरत.
बुढापे का सहारा ही ,कर गये लाचार- बेसहारा,
पड गयीं झुर्रीयाँ उन रिश्तों में भी था जिनपर फक्र जताया.
हैं जिंदा अब दुसरों की दया पर ही,
आँसुऒं की धार भी सांसों संग ही थमेगी.
स्टेशन की सीढीयों पर आज मैं अंतिम सांसें गिन रही,
क्या मेरे मृत शरीर को कफन और लकडी नसीब होगी?
जीतेजी मार गये जो क्या मरने पर उन्हें मेरी कद्र होगी,
पूछती हुँ मैं आपसे क्या बाहें आपकी मुझे कंधा देंगीं?
वरना लाश भी मेरी लावारिस कहलाएगी………..
राजश्री राजभर….
Related
that is fact of life which u have told in this poem. very nice
Thanx alot nehaji
बहुत सुन्दर कविता और एक तरह का सत्य दर्शन है ,
बहुत सुन्दर और भावनापूर्ण लिखा है, हार्दिक बधाई
दिल में बहुत दर्द पहुंचाता है,
जब ये सुनते हैं की ऐसा होता है.
ऐसी व्यथा बुढापे में किसी किसी पर आती है,
ऐसा क्यूँ होता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं,
ये सब के बारे में क्यूँ नहीं होता,
ये बड़ा गंभीर गहन विषय है, और बड़ी समस्या भी .
Thank u so much sir for ur very beutiful and encouraging comments.
अधमरा बेहोश शरीर तरस रहा था एक बुंद पानी को,
देखता जो भी फेंक देता तरस खाकर पैसे दो-चार,
दया थी काफी नहीं,थी हमें दवा और अपनों की जरुरत.
बुढापे का सहारा ही ,कर गये लाचार- बेसहारा,
पड गयीं झुर्रीयाँ उन रिश्तों में भी था जिनपर फक्र जताया.
बहुत खूब….
दिल को छू गई यह पंक्तियाँ………..
thank u so much sir for your best comments.
सच कितना कडवा होता है
सबको बस सहना होता है
अपने अपने खेल सभी के
यहाँ कौन अपना होता है.
thank u so much sir for ur best comments.
बापरे इतना दर्द है की दिल थर्रा गया …और एक तरह का सच भी!
बधाई…