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मोहब्बत का अहसास

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एक अजीब सी हलचल
हर सुबह क्यों होती है
रात भर सोचता हु
ना जाने ये मुहब्बत क्यों होती है

ना कोई बात ना ही मुलाकात
आँखों से ही होती हैं दो चार बात
गुलाब में भी वो महक क्यों होती है
रात भर सोचता हु
ना जाने  ये मुहब्बत क्यों होती है

चेहरे पर होती है एक अजीब सी टीस
और मन में ना जाने कैसी कसीस
होठो पर वो हसी मुस्कराहट क्यों होती है
रात भर सोचता हु
ना जाने ये मुहब्बत क्यों होती है

कब होता शुरू कब होता ख़तम
ना ही कोई आदि है ना ही कोई अंत
ख्वाबो में भी वो, मोहताज क्यों होती है
रात भर सोचता हु
ना जाने ये मुहब्बत क्यों होती है

सपनो में फिर उसका आना जाना
दिल को फिर पुलकित कर जाना
एक अजीब सी हलचल
हर सुबह क्यों होती है
रात भर सोचता हु
ना जाने ये मुहब्बत क्यों होती है

5 Comments

  1. medhini says:

    A beautiful poem, well written,Sanjay.
    …..Ae mohabat kyom hothi hai?
    Keep writing. Welcome to p4poetry.com.

  2. U.M.Sahai says:

    एक अच्छी कविता, संजय, बधाई, कहीं- कहीं शब्दों में कुछ त्रुटियाँ हैं उन्हें सुधारने की आवश्यकता है. आपने कविता लिखी है कि ये मोहब्बत क्यों होती है. मेरी एक कविता है कि ‘प्यार आख़िर क्या है’, उसे पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हो.

  3. Vishvnand says:

    बहुत सुन्दर मनभावन रचना
    बहुत अच्छी लगी …. बधाई
    पढ़कर ख्याल आया
    आप क्यूँ सोचते हैं मुहब्बत क्यूँ होती है,
    मुहब्बत ही कहाँ जानती है की मुहब्बत क्यूँ होती है,
    अब हो गयी है मुहब्बत तो मुहब्बत कीजिये, उसमे डूबिये,
    मजा लीजिये, क्यूँ होती जिन्हें नहीं हुई उन्हें सोचने दीजिये 🙂

    सुन्दर रचना के साथ आपका p4poetry पर हार्दिक स्वागत है और आपकी और कविताओं की प्रतीक्षा भी. .
    अपने बारे में भी कुछ और हमें आपके प्रोफाइल पर बतलाइएगा .

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