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सर्द रातो का ख्याल

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इन सर्द रातो में
एक गरीब  को देख  कर
आज  तो मन ठहर गया
एक पल को  ख्याल आया
की कैसे कटती होंगी इनकी
ये लम्भी डरावनी सर्द राते
एक कम्बल में सोते होंगे
या करते होंगे आपस  में बाते
इंसान तो फिर भी डूंड
ही  लेता है नित नए तरीके
कही छत के निचे तो कही
आग  लगा  कर अपने को सेके
पर  उन  बेजुवानो  का क्या
जो है खुले आसमान के नीचे
और कही अपने घोसले में है दुबके
उनकी कैसी कटती होंगी ये
लम्बी डरावनी सर्द राते
और फिर एक ही पल
आता है ये  ख्याल

की क्या
आदमी के अंदर का इंसान
है मर गया या फिर उसमे भी है
कोई सैतान निवास कर गया

बड़ी अनहोनी का है ये कोई अंदेशा
और पुरे मानव जाती को है मेरा संदेसा
की हे मनुष्य !
तू अब तो अपने आप को रोक
अपने नहीं तो इन जीवो के बारे में सोच
एक एक कर के इन की
सारी जाती है मर गयी
और इन के मन में
तेरा डर  है घर कर गयी
अब तो अपने आप को बदल
मत डा इन जंगलो पर ग़दर

अब तो अपने आप को बदल

अब तो अपने आप को बदल

धन्यवाद!

One Comment

  1. Vishvnand says:

    अच्छी रचना, संवेदनशील भावनाएं और खूबसूरत कहने का अंदाज़ .
    रचना मनभावन और अर्थपूर्ण है. बधाई .

    कुछ थोड़ी जगह शब्द सही नही उतरे उन्हें edit कर सुधारने की जरूरत है

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