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बूँद की कहानी – 1

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निकली थी मै आज घर से,
ठिठुर ठिठुर के सर्द रात में
ऊपर से अति सुन्दर है धरा,
सुना था मैंने नानी की बात में

देख नज़ारा सारा जहाँ का,
बिजली सी कौंदी है घात में
दुल्हन सी सजी बैठी है मानों,
बस एक बूँद के इंतजार में

कुछ पास मै और गयी तो,
मन उलझ गया किसी झंझाल में
कहाँ गिरुं  ये सोच कर,
थम सी गयी, मै बाट (रास्ता) में

बनू मै किसी के दुःख का साथी,
और गिर जाऊं मै फैले हुवे हाथ में
या सुन कर विनती वापस जाऊं
जो बेघर हो कर पड़े हैं राह में

कहीं गिर के मै सिमट जाऊंगी
किसी लोहे की तपती आंच में
या खो जाऊँगी गिरते ही मै
किसी गहरे सागर अपार में

कुछ सहमी सी कुछ बहमी सी,
मन विचलित होता अपनेआप में
अंत समय में जैसे पहुंची मै,
पलके भींच कर लगी मै जाप में

खत्म तो अब मै हो चुकी थी,
पर जन्म लिया नए अवतार में
मोती का रूप लिया था मैंने,
इतने बड़े जग विशाल में

फिर सोचा हम बेमतलब ही,
जाने से डरते है जहान में
घर से बस तुम निकल चलो,
खुद ही पहुँच जाओगे परवान में

to be continue…….

3 Comments

  1. vpshukla says:

    sunder vichar.nikalo to hi manjil milati hai,

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