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ये और बात है अहसान सब भुलाते हैं !

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Hindi Poetry
तुम्हारी  याद के दिल से न साए जाते  हैं !
किये हजार जतन, फिर भी ये सताते  हैं !
न जाने कौन सा जुमला है नागवार लगा
वो अर्जे हाल पे क्यूँ आज तमतमाते   हैं !
है बदनसीबी हमारी, जो  बेखबर हैं वो
कि उनके वास्ते क्या क्या सितम उठाते हैं !
वो भूलते हैं किसी की न कोई गुस्ताख़ी,
ये और बात है अहसान सब भुलाते हैं ! 
कभी तो भूले से आयेंगे इस तरफ भी वो
निगाहें राह में दिन रात हम बिछाते हैं !

8 Comments

  1. U.M.Sahai says:

    ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं
    वो भूलते हैं किसी की न कोई गुस्ताख़ी,
    ये और बात है अहसान सब भुलाते हैं !
    जबकि होना उल्टा चाहिए. इसी पर एक शेर अर्ज़ है
    वो करम उँगलियों पे गिनते हैं
    ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं

  2. prachi says:

    बहुत सुन्दर 🙂

    • siddhanathsingh says:

      @prachi, आप जैसी सुधी पाठक से प्राप्त प्रशंसा बहुमूल्य है.धन्यवाद.

  3. Vishvnand says:

    बहुत खूब, मज़ा आ गया…

    “वो भूलते हैं किसी की न कोई गुस्ताख़ी,
    ये और बात है अहसान सब भुलाते हैं ! ”
    गुस्ताखी ही सही कभी तो भूले से आयेंगें
    निगाहें राह में दिन रात जो हम बिछाए हैं !

  4. Raj says:

    लाजवाब लिखा है सिद्ध नाथ जी. आखिरी पंक्तियों पर कुछ याद आ गया –
    “कभी तो चाँद निकलेगा राहे गुजर पर रौशनी का,
    इसी उम्मीद पे मैंने सभी दीये बुझा डाले.”

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