« हम क्या हैं पूछा सबने, कीमत पर पहचानी कम ! | Couplet » |
ये और बात है अहसान सब भुलाते हैं !
Hindi Poetry |
तुम्हारी याद के दिल से न साए जाते हैं !
किये हजार जतन, फिर भी ये सताते हैं !
न जाने कौन सा जुमला है नागवार लगा
वो अर्जे हाल पे क्यूँ आज तमतमाते हैं !
है बदनसीबी हमारी, जो बेखबर हैं वो
कि उनके वास्ते क्या क्या सितम उठाते हैं !
वो भूलते हैं किसी की न कोई गुस्ताख़ी,
ये और बात है अहसान सब भुलाते हैं !
कभी तो भूले से आयेंगे इस तरफ भी वो
निगाहें राह में दिन रात हम बिछाते हैं !
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं
वो भूलते हैं किसी की न कोई गुस्ताख़ी,
ये और बात है अहसान सब भुलाते हैं !
जबकि होना उल्टा चाहिए. इसी पर एक शेर अर्ज़ है
वो करम उँगलियों पे गिनते हैं
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं
@U.M.Sahai, Vah, kya baat hai Sir.
बहुत सुन्दर 🙂
@prachi, आप जैसी सुधी पाठक से प्राप्त प्रशंसा बहुमूल्य है.धन्यवाद.
बहुत खूब, मज़ा आ गया…
“वो भूलते हैं किसी की न कोई गुस्ताख़ी,
ये और बात है अहसान सब भुलाते हैं ! ”
गुस्ताखी ही सही कभी तो भूले से आयेंगें
निगाहें राह में दिन रात जो हम बिछाए हैं !
@Vishvnand, Thanks for rejoinder Sir.
लाजवाब लिखा है सिद्ध नाथ जी. आखिरी पंक्तियों पर कुछ याद आ गया –
“कभी तो चाँद निकलेगा राहे गुजर पर रौशनी का,
इसी उम्मीद पे मैंने सभी दीये बुझा डाले.”
@Raj, Thanks. Dekhiye na lajvab ka javab bhi to aapne de diya. samvedna ka vistaar bahut vyapak hota hai.