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चाहूँगा फिर भी मै, कि तुझ पे ये इल्ज़ाम न हो

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Crowned Poem, Hindi Poetry
अगर ये ज़िद है कि मुझसे दुआ-सलाम न हो
तो ऐसी राह से गुज़रो जो राहे आम न हो
अगर ये ज़िद है
तेरी जफा ने मुझे कहीं का न छोड़ा है
हो शाम ऐसी कोई, हाथ में जब जाम न हो
अगर ये ज़िद है
वैसे तो  तुम्ही ने बर्बाद किया है मुझको
चाहूँगा फिर भी मै कि तुझ पे ये इल्ज़ाम न हो
अगर ये ज़िद है
तू ख़ूब फूले-फले, और ख़ुश रहे तू सदा
वो सुबह तेरे  लिए हो कि जिसकी शाम न हो
अगर ये ज़िद है

12 Comments

  1. Vishvnand says:

    बहुत खूब मज़ा आ गया, प्यारी रचना है
    ये जिद कैसी है
    जो लगती जिद सी नहीं,
    अगर ये जिद है …
    बधाई

  2. vpshukla says:

    bahut achhe sahay sahab.

  3. Vikash says:

    एक बार गा के पॉडकास्ट पर सुनाते तो मजा ही दुगना हो जाता. वाह!

  4. Sanjay singh negi says:

    अगर ये ज़िद है कि मुझसे दुआ-सलाम न हो
    तो ऐसी राह से गुज़रो जो राहे आम न हो
    अगर ये ज़िद है
    ye line muje bahut hi jyada pasand aayi

  5. parminder says:

    वाह , ऐसी जिद्द के क्या कहने !

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