जान-पहचान जो पुरानी है
मेरी आँखों में थोडा पानी है ,
फकत मेरी यही कहानी है !
धूप में जल रहा चलते चलते ,
कैसे कह दू की रुत सुहानी है !
ढूढता ही रहा हर नगर -डगर ,
मुझे खुशिया कंहा से लानी है !
जंहा पे तू मिले महबूब कंही .
मुझे दुनिया वंही बसानी है !
रात आयी तो सज गयी महफ़िल ,
दिन में दौलत कंही कमानी है !
बेकरारी है जिंदगी में बहुत ,
करार पाना भी बेमानी है !
गम में मरहम थोडा लगा देना ,
हर किसी पे ये आनी-जानी है !
कभी मिले तो मुस्करा देना .
जान-पहचान जो पुरानी है !
दिल का कोना कोई हरा रखो ,
तुझे दुनिया वंही बसानी है !
विजय
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good one,,liked it 🙂
@prachi, thank you prachi ji.
beautiful…
@rachana, shukriya ,rachana ji,
khubsurat
Aasha ho to yesai!
Bahut aacha bhavo ke udagar ke raaste par badhe chale!
@ramesh, bahut bahut dhanyavad.pratikriya achhi lagi.
बहुत सुहाने शेरों की मेजवानी है,
इसमें बहुत खूबी से समझाई
आपने दिल की कहानी है ….
बधाई
@Vishvnand, hamesha ki tarah aap ki pratikriya preranadayak lagi.sva ke bina kavita bhi kaise ayegi hujur.bahut bahut dhanyavad.