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जान-पहचान जो पुरानी है

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मेरी आँखों में थोडा पानी है ,
फकत मेरी यही कहानी है !
धूप में जल रहा चलते चलते ,
कैसे कह दू की रुत सुहानी है !
ढूढता ही रहा हर नगर -डगर ,
मुझे खुशिया कंहा से लानी है !
जंहा पे तू मिले महबूब कंही .
मुझे दुनिया वंही बसानी है !
रात आयी तो सज गयी महफ़िल ,
दिन में दौलत कंही कमानी है !
बेकरारी है जिंदगी में बहुत ,
करार पाना भी बेमानी है !
गम में मरहम थोडा लगा देना ,
हर किसी पे ये आनी-जानी है !
कभी मिले तो मुस्करा देना .
जान-पहचान जो पुरानी है !
दिल का कोना कोई हरा रखो ,
तुझे दुनिया वंही बसानी है !
विजय

8 Comments

  1. prachi says:

    good one,,liked it 🙂

  2. rachana says:

    beautiful…

  3. ramesh says:

    khubsurat
    Aasha ho to yesai!
    Bahut aacha bhavo ke udagar ke raaste par badhe chale!

  4. Vishvnand says:

    बहुत सुहाने शेरों की मेजवानी है,
    इसमें बहुत खूबी से समझाई
    आपने दिल की कहानी है ….
    बधाई

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