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प्यार का मर्ज
Hindi Poetry |
दोस्ती करो!,
इसमें कोई हर्ज़ नहीं,
पर दोस्ती कर के निभाना,
क्या तुम्हारा फ़र्ज़ नहीं,
प्यार करो !,
इसमें कोई दर्द नहीं,
प्यार में मिले जो गम,
तो इसका कोई मर्ज़ नहीं,
खुस रहो,
पर शामिल इसमें किसी का दुःख नहीं,
सच्चा प्यार अगर मिल जाये,
तो फिर ये किसी कर्ज से कम नहीं
शुरू की ४ लाइने अच्छी हैं, संजय, पर बाकी लाइनों में मज़ा नहीं आया क्योंकि, प्यार में तो कभी-कभी बहुत दर्द मिलता है, ग़म का कोई मर्ज नहीं, इस्ला क्या मतलब हुआ, और आखिर में, सच्चा प्यार को कभी एन क़र्ज़ नहीं कहा जा सकता है. वैसे ये मेरे व्यक्तिगत विछार हैं.
@U.M.Sahai, इस्ला को इसका, एन को एक, और विछार को विचार पढ़ा जाए.
I agree with the comments of Sahai Sahab.
I too agree with Sahai Ji………..!
अच्छी लगी पर कविता पर कुछ और कोशिश और सुधारने की जरूरत है ऐसा भी लगा …
i too agree wid sahai saab!!