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बदनीयती से न छुआ, तेरे जिस्म को मैंने कभी …

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Hindi Poetry

   

    शकील मियां, कई दिनों से आपकी कोई नज्म नहीं पढ़ी| आपके नज्मो की याद में एक नज्म लिख रहा हूँ |

 

    बदनीयती से न छुआ, तेरे जिस्म को मैंने कभी

    देख बने है जख्म दिल में, तेरे हर इल्जामों के साथ

 

    पाक इश्क को मेरे तूने, दिया नाम है तशनगी                 [तशनगी – प्यास]

    सुर्ख है  आँखे मेरी अब, हर अश्क बह जाने के साथ

 

    हर नज्म थी तेरे लिए, पर बेसबब मेरा तह्कीर              [बेसबब-आकरण,तह्कीर- अपमान]

    जल गया मै आज यहाँ, अपने सब मंजूमातो के साथ   [मजूमात – नज्मो का संग्रह]

 

    पैमाँ मेरा झूठा न था, न थी कोई रियाकरी                      [पैमाँ -वचन, रियाकरी-ढोंग]

   यू लौट गया दर से तेरे, बेतलब बेगानों के साथ             [बेतलब-बिना बुलाए, बेगानों- अनजान]

 

    बेइमां न था यह दिल मेरा, न थी कोई आवारगी

    पर सुन तेरी तुहमते- तज्वीर, मै मर गया अपमानो के साथ [तुहमते- तज्वीर -झूठे आरोप]

 

6 Comments

  1. prachi says:

    veryyy nice vijay 🙂

  2. Vishvnand says:

    बहुत खूब, बहुत बढ़िया पर बहुत बेबस
    पढ़कर ये पाक इश्क से सजी नज़्म आपकी,
    उभर आया दिल कई भूले ग़मों के साथ ….

  3. rachana says:

    very expressive…liked it…

  4. U.M.Sahai says:

    एक उम्दा नज़्म, विजय, बधाई, पर इश्क में ये लाचारी क्यों ?

  5. parminder says:

    वाह! वाह ! क्या नज़्म है !

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