« ज़ीरो (Zero) की अवस्था और समस्या ….! | जान-पहचान जो पुरानी है » |
बदनीयती से न छुआ, तेरे जिस्म को मैंने कभी …
Hindi Poetry |
शकील मियां, कई दिनों से आपकी कोई नज्म नहीं पढ़ी| आपके नज्मो की याद में एक नज्म लिख रहा हूँ |
बदनीयती से न छुआ, तेरे जिस्म को मैंने कभी
देख बने है जख्म दिल में, तेरे हर इल्जामों के साथ
पाक इश्क को मेरे तूने, दिया नाम है तशनगी [तशनगी – प्यास]
सुर्ख है आँखे मेरी अब, हर अश्क बह जाने के साथ
हर नज्म थी तेरे लिए, पर बेसबब मेरा तह्कीर [बेसबब-आकरण,तह्कीर- अपमान]
जल गया मै आज यहाँ, अपने सब मंजूमातो के साथ [मजूमात – नज्मो का संग्रह]
पैमाँ मेरा झूठा न था, न थी कोई रियाकरी [पैमाँ -वचन, रियाकरी-ढोंग]
यू लौट गया दर से तेरे, बेतलब बेगानों के साथ [बेतलब-बिना बुलाए, बेगानों- अनजान]
बेइमां न था यह दिल मेरा, न थी कोई आवारगी
पर सुन तेरी तुहमते- तज्वीर, मै मर गया अपमानो के साथ [तुहमते- तज्वीर -झूठे आरोप]
veryyy nice vijay 🙂
बहुत खूब, बहुत बढ़िया पर बहुत बेबस
पढ़कर ये पाक इश्क से सजी नज़्म आपकी,
उभर आया दिल कई भूले ग़मों के साथ ….
kollaam
very expressive…liked it…
एक उम्दा नज़्म, विजय, बधाई, पर इश्क में ये लाचारी क्यों ?
वाह! वाह ! क्या नज़्म है !