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“बूंद की कहानी” – 2

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Hindi Poetry

ये कविता मेरी “बूंद की कहानी” का दूसरा भाग है.

इस को समझने के लिए आपको बूंद की कहानी पार्ट -१ पड़ना होगा

मोती का रूप रख के
मै अत्यंत प्रफुल्लित थी
तन को अपने देख के
मन ही मन मै पुलकित थी

देख के सखियों का हस्र
आँखों से होता था कुछ दुःख
समा गयी विशाल सागर में
ना जाने कहाँ हो गयी विलुप्त

तभी अचानक कुछ मानुष आये
तन में मेरे एक हलचल थी
आगे क्या होगा अब मेरा
यही बेचेनी पल पल थी

जब तक मै कुछ समझ पाती
बीचों बीच से छिद गयी थी
खुली विचरण करती बूंद
एक धागे में बंद गयी थी

हंसती खेलती जिन्दगी से
अब तो गयी थी मै हार
सुन्दर दिखाने किसी नारी को
बन गयी थी मै गले का हार

शिकवे तो कई थे दिल में
पर गर्व ये महसूस कर पाई
अपनी ख़ुशी कुर्वान करके
किसी की ख़ुशी के काम तो आई

बलि चढने का नहीं था दुःख
बलि तो सब चढ़ते है
जो किसी को कुछ दे जाये
उन्हें ही अमर कहते हैं

to be continue………..

6 Comments

  1. siddhanathsingh says:

    शब्दों में गलत उच्चारण खटकता है भाई,-खुसी न होकर ख़ुशी होता है,मद्यस्त क्या शब्द है पता नहीं यह मध्य होना चाहिए,कम्शीन नहीं कमसिन होता है जिसका मतलब है कम सिन यानी उम्र वाला व्यक्ति.दागे की बजे धागे होना चाहिए. भाव अच्छे और अभिव्यक्ति सशक्त परन्तु व्याकरण क्षीण है.

  2. swapnesh27 says:

    I agree with Mr Siddhanath Singh Sir regarding grammatical, spelling, and pronunciational errors, but it is also true that yours is a tremendous poem… your thoughts are really amazing… keep it up

  3. U.M.Sahai says:

    एक अच्छी रचना.

  4. dr.paliwal says:

    Rachna Achchhi hai…..

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