« निकल पड़े जो आंसू किसी के… | मुझे नहीं भूलती वो आँखें » |
***जख्मों का हिसाब ….***
Hindi Poetry |
न जाने कितने शबाबों की शराब अभी बाकी है
न जाने कितने जख्मों का हिसाब अभी बाकी है
अभी न कहो हमें उठ के जाने को मैखाने से
थोड़ी ही सही,पर गिलास में शराब अभी बाकी है
ठहर जरा, मुझे ख्वाबों में सहारा देने वाले
इस दिल में बरसों की प्यास अभी बाकी है
लम्हा लम्हा ढल के ही रात जवान होती है
शबनमी रात में उनसे मुलाकात अभी बाकी है
बेहिसाब पी के भी हम होश अपने खो न सके
दिल में मुहब्बत का ताज अभी बाकी हैं
मुड़ के देखोगी तो यकीनन तड़प जाओगी
दीवाने नयनों की बरसात अभी बाकी है
न जाने कितने शबाबों की शराब अभी बाकी है
न जाने कितने जख्मों का हिसाब अभी बाकी है,हिसाब अभी बाकी है…
सुशील सरना
वाह क्या बात है सरना जी, उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई.
@U.M.Sahai,
रचना आपको पसंद आई, शुक्रिया सहाय जी
bahut achhi rachana.badhai sarana ji.
@vpshukla,
आपके इस प्यार भरे कमेन्ट का हार्दिक शुक्रिया शुक्ल साहब
वाह क्या बात है,
बहुत कुछ कह के भी आपने यहाँ बहुत सारा सोचने आजमाने बाक़ी रख दिया …
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई .
@Vishvnand,
आपकी इस प्यारी सी प्रोत्साहन भरी लुभावनी प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद सर जी
Verily very good GHAZAL, SARNA JI !
@ashwini kumar goswami,
Thanks from the bottom of my heart for your kind blessings Sir jee.