« I AM NOT A POET | हाँ, हसरतें कुछ इस तरह, उठती है मेरे जहन में… » |
जिसपे रो लें ,कोई शाना ही नहीं
Hindi Poetry |
ये फ़साना बस फ़साना ही नहीं !
सच मगर तुमने ये जाना ही नहीं !
आ सका शायद हमें अच्छी तरह
दास्ताने दिल सुनाना ही नहीं !
शामे फ़ुरक़त गम की लज्ज़त क्या मिले, ( furqat-viyog)
जिसपे रो लें ,कोई शाना ही नहीं ! (shanah-kandha)
तुमने भी जज़्बात कब समझे मेरे,
मुझपे हँसता था ज़माना ही नहीं !
रोज़ दुनिया दर्द देती है नए ,
दर्द एक तेरा पुराना ही नहीं !
जिससे उजड़ेंगे कई सहने चमन, ( sahne chaman-upvan prangan)
उन गुलों से घर सजाना ही नहीं ! (gul-phool)
ज़िन्दगी का है कोई मकसद ज़रूर,
ज़िन्दगी बस आना जाना ही नहीं !
गर्दिशों में आज तक मसरूफ हैं, (gardish-chkraman,parikrama)
चाँद तारों का ठिकाना ही नहीं !
पर्दादारी इस क़दर हमसे तुम्हे, (pardadari— durav-chipav)
तुमने हमको अपना माना ही नहीं !
और कब तक रहते मिस्ले अजनबी, (misle ajnabi-ajnabi ki tarah)
जिस शहर में आबो दाना ही नहीं ! (aabo dana-aashraya)
कुल चमन हिर्सो हसद में फुंक रहा, (hirso-hasad- lalach aur irshya)
जल रहा एक आशियाना ही नहीं !
अच्छी ग़ज़ल, एस.एन. बधाई खास तौर पर ये लाइने
जिससे उजड़ेंगे कई सहने चमन,
उन गुलों से घर सजाना ही नहीं !
@U.M.Sahai, Thanks Sir for the encoraging comment.
सुन्दर रचना| शब्दों का बहुत सुन्दर प्रयोग है|
@parminder, परमिंदर जी, रचना पसंद कर टिप्पणी करने के लिए शुक्रिया.