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तन्हा की डायरी
Hindi Poetry |
किसी अकेले या तन्हा को शब्दों से नफरत होती है
ये बात कोई नहीं जानता
मेरे लिए भी ये बात राज़ ही रहती
जो मुझे एक रोज तन्हाई में पड़ी किसी तन्हा की तन्हा सी
वो डायरी न मिलती
अजीब भाषा में लिखी गयी थी वो डायरी
एक भी शब्द मैं न पहचान पाया
फिर समझा की ये शब्द है ही नहीं
तन्हा को शब्दों से क्या वास्ता
यूँ तो तन्हा भी एक शब्द होता है
पर जो तन्हा हो वो निशब्द होता है
कुछ बेढंगे से चेहरे बने थे अन्दर के कुछ पन्नों पर
कुछ के चेहरे नहीं थे तो किसी का
सर नहीं था कंधों पर
न जाने कब से तन्हा था
चेहरे कैसे होते हैं ये भी भूल गया था
ये देख मैं सहम गया
डायरी पर उसका नाम न दिखा कहीं
पर रूह सहम गयी जब ये समझा के
उसने नाम क्यों नहीं लिखा
क्या लिखता उस नाम को जिसे किसी ने बुलाया नहीं
कभी मिलो किसी तन्हा से
तो इतना काम जरूर कर देना
बहुत पास न जाना बेशक और
चाहे कोई बात न करना
दूर से ही उसे “तन्हा” कह देना
याद करने करने को चेहरा
और लिखने को एक नाम
दे देना
सुंदर रचना, बधाई
वाह क्या बात है.तनहा को संज्ञाशून्य बना दिया आप ने, मगर ऐसा होता है क्या?
किसी शायर ने कहा है-
मेरे सुकूत से मुझे बेहिस न जानिये, (सुकूत-ख़ामोशी, बेहिस-संज्ञा शून्य )
अलफ़ाज़ की कमी है,ख़यालात की नहीं !
@siddhanathsingh, अति सुन्दर पंक्तियाँ 🙂
good one 🙂