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लहरों की तरह हम भी तड़पते से रह गए

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Hindi Poetry
लहरों की तरह हम भी तड़पते से रह गए ,
सागर की तरह कोई मचल के चला गया !
 देखा जो बार बार तो अपना न था कोई ,
फिर आईने में दिल के कोई क्यों उतर गया !
बेदर्द बेजुबा है इस दिल की लगी भी ,
अफशोस तेरा नाम ,क्यों कैसे निकल  गया !
क्यों तार तार हो रहे हैं दिल के पैरहन ,
किसको बताये कौन ये हालात कर गया !
रिश्तो की बात कर रहा था कल वो अकेले ,
दुनिया के सामने वही झट से मुकर गया !
अब भी कोई यकीन बुलाता है बार बार ,
दुनिया की सरहदों में गोया सब सिमट गया !
             विजय   

6 Comments

  1. U.M.Sahai says:

    अच्छी ग़ज़ल, शुकला जी, बधाई

  2. sushil sarna says:

    सुंदर भाव,सुंदर अभिव्यक्ति,सुंदर प्रवाह-कृपया अफशोस को अफ़सोस लिखें – रचना के लिए बधाई

  3. Ramesh says:

    ati sundar, bhavo ka samveg sahit pravah va madhur sukomal bhava ko prastut karane wali yah rachana! wah! bahut achhee lagi.

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