« रात आ गयी है | निकल पड़े जो आंसू किसी के… » |
लहरों की तरह हम भी तड़पते से रह गए
Hindi Poetry |
लहरों की तरह हम भी तड़पते से रह गए ,
सागर की तरह कोई मचल के चला गया !
देखा जो बार बार तो अपना न था कोई ,
फिर आईने में दिल के कोई क्यों उतर गया !
बेदर्द बेजुबा है इस दिल की लगी भी ,
अफशोस तेरा नाम ,क्यों कैसे निकल गया !
क्यों तार तार हो रहे हैं दिल के पैरहन ,
किसको बताये कौन ये हालात कर गया !
रिश्तो की बात कर रहा था कल वो अकेले ,
दुनिया के सामने वही झट से मुकर गया !
अब भी कोई यकीन बुलाता है बार बार ,
दुनिया की सरहदों में गोया सब सिमट गया !
विजय
अच्छी ग़ज़ल, शुकला जी, बधाई
@U.M.Sahai, dhanyavad sir ji.
सुंदर भाव,सुंदर अभिव्यक्ति,सुंदर प्रवाह-कृपया अफशोस को अफ़सोस लिखें – रचना के लिए बधाई
@sushil sarna, pratikriya ke liye dhanyavad.aage se khyal rakhunga .
ati sundar, bhavo ka samveg sahit pravah va madhur sukomal bhava ko prastut karane wali yah rachana! wah! bahut achhee lagi.
@Ramesh, dhanyavad Ramesh ji.pratikriya ke liye dhanyavad.