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माँ -एक कड़वा सच

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Hindi Poetry
माँ -एक कड़वा सच
(माँ का गुणगान और बखान हम बहुत कर रहे हैं.पर सच तो यह है की हममे से आधे लोग ऐसे हैं जो माँ को अपने पास नहीं रख रहे हैं.माँ या तो दूसरे बेटों के पास रह रही है या बेटी के पास है.हम लोग केवल अपने बेटे,पोते,पोती या पुत्री जवाई तक सीमित रह गए है.हम अपनोके बीच उस माँ को भुला बैठे हैं जिसने हमें जनम दिया था.ये सच्चाई है,इसे कोई माने या ना माने पर आसपास जिन जिन घरों में देखता हूँ माँ को ऐसा ही पा रहा हूँ.आओ आज इस जननी  दिवस पर अपने द्वारा भुलाई माँ को याद करें और उसे सम्मान देकर  माँ के चरणस्पर्श करें) 
 
हाथ पांव चलते हैं जब तक ,माँ तू सबको प्यारी है
जिस दिन खटिया पकड़ के  खांसे  ,उस दिन लगे तू भारी है
हर बेटा तेरा है तब तक ,जब तक वो कुवारा है
जिस दिन पत्नी आये उसकी ,प्यार बंट गया सारा है
तेरी सदा जरुरत रहती ,बहु करती  जहां नौकरी
चूल्हा चक्की तेरे जिम्मे ,पोता पोती चाकरी
घर की तू रखवाली रखती,बहु और बेटा  सैर   करें
रात रात भर इंतज़ार कर ,खाना उनका गरम करे 
तेरे लिए नहीं कोई कमरा ,बेड रूम तेरा   बरामदा 
मेहमान कभी आ जाये घर पे होना पड़ता तुझे विदा
कई हैं तेरे बेटे फिर भी ,तेरा  कोई ना  घर अपना
था गुमान  बेटों  पर तुझको,  रहा  अधूरा ये सपना
जबसे पोता बड़ा हुवा है ,तू उससे हो गयी छोटी
जगह नहीं  है इस  घर में,   कम पड़ने लगी तेरी  रोटी
तूने चार पांच पाले थे ,इनसे नहीं इक पलती माँ
महंगाई जैसे तू लाई,रखे तुझे तो निकले जाँ
कैसा आया आज जमाना,मतलब है तब तक है  माँ 
मतलब निकल गया तो बोले तू  है कौन खामखां 
माँ की याद आज रह गयी ,बस  अभ्यावेदन पत्रों में 
या फिर माँ की याद आएगी सैर भ्रमण के  सत्रों में  
 बेटे की बदली हो जावे  ,विपरीत  जगह या कोने में 
माँ को बीमारी हो जाती, अर्जी  के हर पन्नो में  
माँ की सेवा करूँगा कैसे , निरस्त करो  बदली मेरी 
बड़े साब से माँ   मिलवाने में अब नहीं होती है देरी
माँ तो है बस टूल रह गयी ,बदली को रुकवाने में
या माँ का उपयोग करेंगे ,घर खाना बनवाने में
शहर से बाहर जब  जाना हो ,माँ की याद  तब आती है
सूना घर सामान है घर में ,माँ  को बहु बुलाती  है
माँ भी भोली कितनी होती,जान बूझ अनजान रहे  
बेटा पोता  बहु  रहें खुश ,उसका ये अरमान रहे
देख रहा हूँ  इस दुनिया को,फिर भी ना कुछ कर पाया 
क्यूँ होता खुदगर्ज़ ये इन्सां ,ऐसा करके क्या पाया 
करते हम आदर्श की बातें ,कविता लिखते जननी पर 
माँ का नहीं ख्याल हमें,शर्मिंदा होंगे करनी पर 
दिल पे हाथ रखे हम  सारे ,बोलो माँ को रखता कौन ?
जनम दिया जिस माँ ने तुमको ,बोलो  उससे,  तोड़ो मौन 
जो कुछ किया आज तक  हमने  ,उसका पश्चाताप करें  
माँ की सेवा घर ला कर  हम   पापों का संताप  करें  
मरना सबको है इक दिन तो माँ भी ये मर जाएगी 
मौका मिला है माँ सेवा का , ख्वाहिश ये  रह जाएगी
माँ का ऋण भारी है सर पे ,वो ना चुका हम पाएंगे 
सेवा करके ब्याज चुका ले , कुछ तो हम कर पाएंगे.
———–सी के गोस्वामी जयपुर
 

18 Comments

  1. Vishvnand says:

    अति सुन्दर सटीक रचना है, असली सत्य का है दर्पण
    सत्य को अब मत झूठ से ढांको, पूंछो खुद के अपने मन ….
    माँ ने कितना किया हमारे कुछ तो फेड़ो उनका ऋण
    सच है ऐसे बहुत से जन हैं जो नहीं समझे माँ का मन

    इस रचना के लिए हार्दिक अभिनन्दन और अभिवादन
    सब कुछ तो आपने इस रचना में उजागर कर दिया जो हमारे मन में सदियों से खटक रहा था. प्रहार अति उत्तम.

    Stars 5 + + +

    “माँ भी भोली कितनी होती,जान बूझ अनजान रहे
    बेटा पोता बहु रहें खुश ,उसका ये अरमान रहे
    दिल पे हाथ रखे हम सारे ,बोलो माँ को रखता कौन ?
    जनम दिया जिस माँ ने तुमको ,बोलो उससे, तोड़ो मौन
    जो कुछ किया आज तक हमने ,उसका पश्चाताप करें
    माँ की सेवा घर ला कर हम पापों का संताप करें
    मरना सबको है इक दिन तो माँ भी ये मर जाएगी
    मौका मिला है माँ सेवा का , ख्वाहिश ये रह जाएगी
    माँ का ऋण भारी है सर पे ,वो न चुका हम पाएंगे
    सेवा करके ब्याज चुका ले , कुछ तो हम कर पाएंगे.” … सन्दर्भ में बहुत प्रशंसनीय उत्कृष्ट पंक्तियाँ

    • c k goswami says:

      @Vishvnand, ये आपकी ही टिप्पणियां होती हैं जो मुझे सत्य लिखने की प्रेरणा देती हैं.आपने सदैव मेरी कविताओं को ध्यान से पढ़ कर प्रतिक्रियाएं दी हैं,आपको ह्रदय से धन्यवाद्.

  2. prachi sandeep singla says:

    fully agreed wid vishvanand sir ji…veryyyyyy nice 🙂

  3. siddhanathsingh says:

    आप की हृदयस्पर्शी और वास्तविकता का अंजन आँखों में उन्ड़ेलती रचना पढ़ कर राम कुमार “कृषक” की कविता स्मरण हो आई-
    धीरे धीरे माँ हुई कोने का सामान.
    चला कहीं जाये नहीं मेहमानों का ध्यान.
    बड़का दिल्ली जा बसा मंझला दूजे देस.
    दीपक धर माँ थान पर मांगे कुशल हमेस.
    खटिया तक महदूद है अम्मा का संसार,
    व्यर्थ सभी संचार हैं,तार और बेतार .

  4. rajdeep says:

    very nice poem

    • c k goswami says:

      @rajdeep, आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार में मेरी अन्य कवितायेँ यथा कुवा और खाई, हिन्दू ,न निकले देश का हल – छोटे छोटे दल भी पड़ी हैं.प्रतिक्रिया के लिए समय निकालिए सरजी.
      आपको अच्छी लगी,शुक्रिया.

  5. parminder says:

    बहुत ही कडवा सच कह डाला है! ह्रदय को छु गयी अन्दर तक!

    • c k goswami says:

      @parminderइस कविता को प्रकाशित करवाते समय मैं बहुत चिंतित था ,मुझे लग रहा था कि लोग सच्चाई स्वीकार करने की बजाय मुझे भला बुरा कहेंगे तथा इस सच्चाई का ज़बरदस्त विरोध होगा क्योंकि कोई भी इंसान अपनी बुराइयों पर कटाक्ष स्वीकार नहीं करता पर आप सभी कवियों की प्रतिक्रिया देखकर अब लग रहा है कि आप जैसे सच्चाई को स्वीकार करनेवाले अभी भी लोग विद्यमान हैं.
      आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद् .

  6. U.M.Sahai says:

    यथार्थ को दर्शाती एक अत्यंत भाव-प्रधान कविता. लोग बातें बड़ी-बड़ी करते हैं, पर आज कल अधिकतर जगह वही हो रहा है जिसका आपने इस कविता में इतना सुंदर चित्रण किया है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें, गोस्वामी जी.

  7. vpshukla says:

    bahut sundar,marmsparshi,bhavbhari kavita, badhaai.

    • c k goswami says:

      @vpshukla, आप जैसे प्रबुद्ध व्यक्ति जब किसी रचना को सराहते हैं तो एक अलग सी खुशी मिलती है .धन्यवाद्.

  8. dr.o.p.billore says:

    उत्कृष्ट रचना | जितनी प्रशंशा करो कम ही है | बधाई |
    आपके सम्मान में :-
    बहु पुत्रों की जननी का जो हाल बताया गोस्वामीजी |
    द्रगजल बरबस बह निकला सुन जननी की गत गोस्वामीजी |
    माँ का कड़वा सच पड़कर भी जिनकी आँखें नहीं खुलें |
    प्रज्ञा-चक्षु उन्हें कहते है कवीवर सी.के.गोस्वामीजी ||

    • c k goswami says:

      @dr.o.p.billore, आपके विचारों से सहमत होते हुवे मैं माँ के उन लाडलों से कहता हूँ कि अब भी समय है कि अपनी गलती सुधार कर प्रायश्चित कर लो ,कहीं ऐसा न हो कि माँ की, सेवा का मौका ही हाथ से चला जाये .
      दुनिया या समाज को दिखाने के लिए या केवल माँ पर कविता लिखने मात्र से माँ की सेवा नहीं होगी,आपकी औलाद आपको देख रही है जो कुछ आप माँ-बाप के लिए करेंगे वैसे ही आपकी औलाद आपके साथ व्यवहार करेगी . आपकी प्रतिक्रिया और आपके विचारों के लिए धन्यवाद्.

  9. Ravi Rajbhar says:

    Oh… aapne to ankhe nam kar di sir ji,
    sach-much samaj me kuchh nahi bahut se bete maa ka aisa kashra karte dikh jaten hai…..
    mai hamesh kahta hun…aur aaj bhi yahi kahunga…aapka vishay chunaw hame kuchh sikha dena wala hota hai….aapki rachnao ko padhne ka kuchh matlab niklta hai….aur dil kuchh der tak uspar sochta hai…
    bahut -2 badhai is post ke liye.
    (aapki videsh se wapsi ho gai hai….?)

    • c.k.goswami says:

      @Ravi Rajbhar, समाज को सत्य का आईना दिखाना ही सही कविता है.झूठ का सहारा लेकर केवल माँ की महिमा करते रहना और वक़्त आने पर उसे दो रोटी भी उपलब्ध न करवा पाना ,सही रूप में माँ की सेवा नहीं है. माँ से दूर बैठकर उस पर दो पंक्तियाँ लिख देने से माँ की सेवा नहीं होती.माँ जब बेटे से अपने पास बुलाने का कहे और बेटा ये कह दे यहाँ तो छोटा सा मकान है आप कैसे रह पाओगी,माँ की न तो सेवा है और न ही माँ का सम्मान है .माकन नहीं ,दिल में जगह चैये.
      अपनी कविता में मैंने वही लिख डाला जो आसपास और समाज के बीच देखने को मिला.
      विषय चयन में आप जैसे लोगों की पसंद छिपी रहती है.सत्य का सामना करके सच को देखनेवालों को धन्यवाद्.घिसे-पिटे एक से विषय पर लिखना -मुझे कतई अच्छा नहीं लगता.अब कोई प्रतिक्रिया दे या न दे या ऐसी कविता की सराहना करे या न करे ,इस बात की परवाह नहीं करता.मेरी हर कविता में आपको अलग विषय ही नज़र आयेंगे.रविजी आप जैसे पाठकों का मैं शुक्रगुजार हूँ जो मेरे विषय और कविताओं पर अपनी राय व्यक्त करते हैं.धन्यवाद्.

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