« »

हे शरीर तुम स्वस्थ रहो

2 votes, average: 4.00 out of 52 votes, average: 4.00 out of 52 votes, average: 4.00 out of 52 votes, average: 4.00 out of 52 votes, average: 4.00 out of 5
Loading...
Hindi Poetry

 

 

  हे शरीर तुम स्वस्थ रहो    

 हमारी देह नश्वर है यह सभी जानते हैं। फिर भी उस पर अत्याचार् करने से नहीं चूकते | वरन अज्ञान-वश व्यसनों, व्यंजनों और विचारों के माध्यम से  मानो  सदैव उससे प्रतिशोध लेने का प्रयास करते रहते हैं। यदि हम इस देह को सहयोग करें, तो निश्चित ही हमारे पूर्वजों व ऋषि मुनियों कि भांति हम भी इसे निरोगी एवं दीर्घ‌‌‌-जीवी बना सकते हैं। बस आवश्यकता है उनके बताये हुए मार्ग का अनुसरण करने की। योगाचरन सर्व श्रेष्ठ मार्ग है।  आशा है प्रस्तुत पंक्तियाँ  आपको पसंद आयेंगी | करेंगी।

 

हे शरीर तुम स्वस्थ रहो, मैं तुम्हे सहयोग दूँगा।
योग के हर अंग से, प्रतिदिन तुम्हें पोषित करूँगा।।

यम, नियम को आचरित कर, आसनों को सिद्धकर।
और प्राणायाम से नव-प्राण भरता ही रहूँगा।।

अंतर्मुखी कर इंद्रियों को, प्रत्याहारी मैं बनूँगा।
देह तुमको सुदृढ़ करने के, जतन सब मैं करूँगा।।


किंतु प्रभु में धारणा कर, ध्यान जब करने लगूँ।
भूल कर निज भान को, जब मैं समाधि को वरुंगा।|

तब मुझे विचलित न करना, तुम मुझे सहयोग करना।
हे शरीर तुम स्वस्थ रहो, मैं तुम्हें सहयोग दूँगा।।
 

14 Comments

  1. Vishvnand says:

    अति सुन्दर भावपूर्ण और बहुत अर्थपूर्ण रचना,
    अपने शरीर के प्रति यही भावना उच्चकोटि की समझ का प्रतीक है.
    इस रचना के लिए हार्दिक बधाई और बहुत धन्यवाद भी ..

    • dr.o.p.billore says:

      @Vishvnand, परम आदरणीय विश्वनंद जी, कविता की मंशा को जाना और सराहा आपका बहुत बहुत धन्यवाद |
      कविता प्रेषित करने के तुरंत बादसे ही अंतरजाल में कुछ बाधा उत्पन्न हो गयी थी जो अभी ठीक हुई |

  2. Raj says:

    रचना पसंद आई. एक अलग अंदाज.

    • dr.o.p.billore says:

      @Raj, राज जी रचना पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद |

  3. prachi sandeep singla says:

    मुझे पसंद आई,,बिलकुल मेरे पापा के विचारो को कविता के रूप में पढ़ा मैंने जैसे 🙂

    • dr.o.p.billore says:

      @prachi sandeep singla, आपकी इस प्रतिक्रया से रचना सार्थक हुई और मै गौरवान्वित | प्यारी सी प्रतिक्रया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |

  4. vmjain says:

    एक अलग अंदाज़ में खूबसूरत रचना.

    • dr.o.p.billore says:

      @vmjain, आपकी इस प्रतिक्रया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |

  5. U.M.Sahai says:

    बहुत अच्छी कविता, बिल्लोर जी.

    • dr.o.p.billore says:

      @U.M.Sahai, कविता पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद |आपकी इस प्रतिक्रया से रचना सार्थक हुई |

  6. c k goswami says:

    पी फॉर पोयट्री के गुलदस्ते में एक अलग तरह का फूल जो खुशबु के साथ नवप्राण भी देता है . सुन्दर शिक्षवर्धक कविता.

    • dr.o.p.billore says:

      @c k goswami, योग के आठों अंगों को समाविष्ट करते हुए अपने ही शरीर से किया गया आग्रह आपको पसंद आया आपका धन्यवाद |सुन्दर सी प्रतिक्रया के लिए पुन: धन्यवाद |

  7. parminder says:

    बहुत सुन्दर भाव! स्वस्थ शरीर स्वस्थ मन की और अग्रसर करता है, और स्वस्थ मन ईश्वर की और| बहुत बढ़िया!

    • dr.o.p.billore says:

      @parminder, प्यारी सी प्रतिक्रया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |

Leave a Reply