रचना भक्ति भावना की अच्छी प्रस्तुती है पर बुरा न मानें हिंदी की कुछ अशुद्धियाँ उसके प्रवाह में बाधक बन रही है जैसे-भागेथे की जगह भागे थे – थामलो के स्थान पर थाम लो-श्रमित की जगह भ्रमित और द्रग के स्थान पर दृग होना चाहिए वैसे ऐसी सुंदर रचना के लिए बधाई
@sushil sarna, आदरणीय सरना साहेब , कविता को ध्यान से पढ़ने एवं त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए आपका धन्यवाद एवं आभार | इसी तरह सदैव कृपा बनाए रखें |
आपके निर्देशानुसार भागेथे को भागे थे ,थामलो के स्थान पर थाम लो एवं द्रग को दृग कर दिया है |श्रमित की जगह भ्रमित नहीं किया है | क्योंकि श्रमित से आशय है थकना | अर्थात रोज रोज पथ निहारते निहारते आँखें थक गई हैं |
भ्रमित नहीं हुई हैं | आगे जैसा आप कहें | प्रवास पर होने के कारण उत्तर देने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा |
कंप्यूटर में bhasha aur मात्राओं की त्रुटियाँ ho hi jati hai ,हमें उन पर nazar डाल कर kamee की or ishara करने की बजाय कवि के bhaav ,vichar और कविता के प्रवाह को देखना chahiye,इन तीनो में कवि सफल रहा है.mera vichar है कि sahay sahab और sarnaji ka kahne ka tatpary yah hoga कि rachna को prakashit kiye jane se purv yadi swasampadit कर liya jata to rachna और bhi shreshtha ho jati.prabhu pratiksha karwata है और uski adheerta को napta है tatpashchat bhakt कि sunta है.
@basant tailang bhopal, आपकी सराहना एवं कवि के प्रति प्रकट द्रष्टिकोण जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई |साधुवाद |
आपने बिलकुल सही कहा .प्रभु प्रतीक्षा करवाता है और उसकी अधीरता को नापता है तत्पश्चात भक्त कि सुनता है |सधी हुई प्रतिक्रया के लिए पुन: आपका धन्यवाद |
बहुत सुन्दर भावनिक भक्ति पद ( गीत )
बहुत मनभावन है . इस सुन्दर पद के लिए हार्दिक बधाई …
” बाट जोहता हूँ मैं भगवन कब आओगे |
समाधान लेकर मेरी सब विपदाओं के ||”
सिर्फ ये अंतिम पंक्ति मन में खटकी. इसकी मेरे ख्याल में जरूरत ही नहीं है. जब भगवन से साक्षात्कार हो तो कोई विपदाएं रहेंगी ही कहाँ . अपने आप सब भस्म हो जायेंगी.
@Vishvnand, आपकी अत्यंत ही स्नेह मई प्रतिक्रिया पा कर मन प्रसन्न हुआ |बहुत बहुत धन्यवाद |
बाट जोहता हूँ मैं भगवन कब आओगे |
समाधान लेकर मेरी सब विपदाओं के ||”
इस पद की अंत में पुनरावृत्ति आपके कथनानुसार हटा दी गयी है |इसी तरह स्नेह बनाए रखें |
@dr.o.p.billore
मैं ठीक से अपनी बात समझा नहीं पाया. मेरा अनुरोध सिर्फ ” समाधान लेकर मेरी सब विपदाओं के ||” इस last लाइन को दुहराने की जरूरत को हटाने का था. ” बाट जोहता हूँ मैं भगवन कब आओगे | ये last line तो जरूर चाहिए.
गीत तो बहुत सुन्दर बन गया है और इसे तर्ज़ में गुनगुनाने मन करता है.
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@Raj, भक्ति गीत पसंद करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद |आपने बिलकुल ठीक ही कहा है इंतज़ार का फल मीठा होता है|
इसीलिये कविता का शीर्षक भी “प्रतीक्षा” ही दिया है |
प्रभु प्रतीक्षा अधीरता की परीक्षा लेती है और जो इसमें सफल हो जाता है ,प्रभु उसकी सुनता है .आपकी भी उसने सुनी है और हम सब टिप्पणीकारों को विवश कर दिया कि हम इस पर प्रभु कि और से सकारात्मक प्रतिक्रिया दे,और ऐसी दी भी गयीं.बहुत अच्छी लगी ये रचना.
@c.k.goswami,
प्रेम से लथपथ और प्यार से सराबोर |
आपकी प्रतिक्रया पढ़ कर नाचा मन मोर ||
धन्यवाद आपका जो कविता पर किया गौर |
इसी तरह संबल मिलता रहे हमें और ||
रचना भक्ति भावना की अच्छी प्रस्तुती है पर बुरा न मानें हिंदी की कुछ अशुद्धियाँ उसके प्रवाह में बाधक बन रही है जैसे-भागेथे की जगह भागे थे – थामलो के स्थान पर थाम लो-श्रमित की जगह भ्रमित और द्रग के स्थान पर दृग होना चाहिए वैसे ऐसी सुंदर रचना के लिए बधाई
@sushil sarna, आदरणीय सरना साहेब , कविता को ध्यान से पढ़ने एवं त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए आपका धन्यवाद एवं आभार | इसी तरह सदैव कृपा बनाए रखें |
आपके निर्देशानुसार भागेथे को भागे थे ,थामलो के स्थान पर थाम लो एवं द्रग को दृग कर दिया है |श्रमित की जगह भ्रमित नहीं किया है | क्योंकि श्रमित से आशय है थकना | अर्थात रोज रोज पथ निहारते निहारते आँखें थक गई हैं |
भ्रमित नहीं हुई हैं | आगे जैसा आप कहें | प्रवास पर होने के कारण उत्तर देने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा |
उत्तम भक्ति रचना, बधाई, पर सरना जी की टिप्पड़ी से सहमत.
@U.M.Sahai, आदरनीय सहाय साहेब , भक्ति रचना ” प्रतीक्षारत ” पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद | त्रुटियों का समाधान करने का प्रयास किया है |
कंप्यूटर में bhasha aur मात्राओं की त्रुटियाँ ho hi jati hai ,हमें उन पर nazar डाल कर kamee की or ishara करने की बजाय कवि के bhaav ,vichar और कविता के प्रवाह को देखना chahiye,इन तीनो में कवि सफल रहा है.mera vichar है कि sahay sahab और sarnaji ka kahne ka tatpary yah hoga कि rachna को prakashit kiye jane se purv yadi swasampadit कर liya jata to rachna और bhi shreshtha ho jati.prabhu pratiksha karwata है और uski adheerta को napta है tatpashchat bhakt कि sunta है.
@basant tailang bhopal, आपकी सराहना एवं कवि के प्रति प्रकट द्रष्टिकोण जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई |साधुवाद |
आपने बिलकुल सही कहा .प्रभु प्रतीक्षा करवाता है और उसकी अधीरता को नापता है तत्पश्चात भक्त कि सुनता है |सधी हुई प्रतिक्रया के लिए पुन: आपका धन्यवाद |
बहुत सुन्दर भावनिक भक्ति पद ( गीत )
बहुत मनभावन है . इस सुन्दर पद के लिए हार्दिक बधाई …
” बाट जोहता हूँ मैं भगवन कब आओगे |
समाधान लेकर मेरी सब विपदाओं के ||”
सिर्फ ये अंतिम पंक्ति मन में खटकी. इसकी मेरे ख्याल में जरूरत ही नहीं है. जब भगवन से साक्षात्कार हो तो कोई विपदाएं रहेंगी ही कहाँ . अपने आप सब भस्म हो जायेंगी.
@Vishvnand, आपकी अत्यंत ही स्नेह मई प्रतिक्रिया पा कर मन प्रसन्न हुआ |बहुत बहुत धन्यवाद |
बाट जोहता हूँ मैं भगवन कब आओगे |
समाधान लेकर मेरी सब विपदाओं के ||”
इस पद की अंत में पुनरावृत्ति आपके कथनानुसार हटा दी गयी है |इसी तरह स्नेह बनाए रखें |
@dr.o.p.billore
मैं ठीक से अपनी बात समझा नहीं पाया. मेरा अनुरोध सिर्फ ” समाधान लेकर मेरी सब विपदाओं के ||” इस last लाइन को दुहराने की जरूरत को हटाने का था. ” बाट जोहता हूँ मैं भगवन कब आओगे | ये last line तो जरूर चाहिए.
गीत तो बहुत सुन्दर बन गया है और इसे तर्ज़ में गुनगुनाने मन करता है.
.
सुन्दर गीत. इंतज़ार का फल मीठा होता है 🙂
@Raj, भक्ति गीत पसंद करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद |आपने बिलकुल ठीक ही कहा है इंतज़ार का फल मीठा होता है|
इसीलिये कविता का शीर्षक भी “प्रतीक्षा” ही दिया है |
bahut achchi kavita..padh ke aisa laga bhagwan zarur aayenge, aapne itne man se jo bulaya hai!
@rachana, आपके मुँह में घी शक्कर |अर्थात आपकी वाणी सफल हो |
कविता पसंद करने केलिए और सुन्दर सी प्रतिक्रयाके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |
प्रभु प्रतीक्षा अधीरता की परीक्षा लेती है और जो इसमें सफल हो जाता है ,प्रभु उसकी सुनता है .आपकी भी उसने सुनी है और हम सब टिप्पणीकारों को विवश कर दिया कि हम इस पर प्रभु कि और से सकारात्मक प्रतिक्रिया दे,और ऐसी दी भी गयीं.बहुत अच्छी लगी ये रचना.
@c.k.goswami,
प्रेम से लथपथ और प्यार से सराबोर |
आपकी प्रतिक्रया पढ़ कर नाचा मन मोर ||
धन्यवाद आपका जो कविता पर किया गौर |
इसी तरह संबल मिलता रहे हमें और ||