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पी4पोएट्री का बादल
Hindi Poetry |
पी4पोएट्री का बादल
पी४पोएट्री के मुखप्रष्ट पर बादलों का एक द्रश्य दिखाई दे रहा है| आप भी ध्यान से देखें |
जिसे देख कर कुछ विचार मन में उठे जो पर्यावरण दिवस के उपलक्ष पर आपके सम्मुख प्रस्तुत है |
बादल धरती पर लेट कर,
क्या देख रहा है नील गगन में |
क्या संदेह समाया मन में,
क्यों आया अवनी आँगन में ||
सोच रहा किसने विदीर्ण की,
ओजोन ओढनी गगना की |
फिर द्रष्टिपातकर वसुधा पर,
रोया लख दुर्गति भूतल की||
रे मानव क्यों निष्ठुर बनकर,
महि नभ पर इतना तू बरसा |
मै नीर सरोवर से लाया ,
पर वर्षा करने को तरसा ||
पर्यावरण प्रेमी डाक्टर साहिब -बहुत ही सुन्दर रचना है.सही मायने में कवि ही वो है जो चित्र देखकर उसे जीवित कर दे और घटनास्थल पर ही कलम चला दे.
@c.k.goswami, आपकी सराहना का संबल आत्म बल बढ़ा देता है |
शब्दों की पतवार कविता की नौका पर लगा देता है ||
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आपकी सराहना का संबल आत्म बल बढ़ा देता है |
शब्दों की पतवार कविता की नौका पर लगा देता है ||
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
पर्यावरण पर एक सुंदर रचना, बिल्लोरे जी.
@U.M.Sahai, रचना पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद |
Really nice one.
@Raj, कविता को पसंद करने के लिए एवं उत्साह वर्धन केलिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद राज जी \
बहुत बढ़िया अंदाज़ और सुन्दर मनभावन अर्थपूर्ण रचना,
इस रचना के लिए हार्दिक बधाई और धन्यवाद भी …