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एक्टर
Hindi Poetry |
दिल क्यूं नहीं मानता
सच्चाई का सामना क्यूँ नहीं करता
अभी भी सोचता है कि तुम आओगे ,बुलाओगे
ना ही तुम आये,ना ही तुमने बुलाया
याद है तुम ही ने कहा था- आख़री सांस तक हम साथ रहेंगें
तुम्हारे वादे तो बस मूंह से निकले शब्द
उनका कोई वजूद नहीं
वजूद है तो बस एक सच का
कि झूठ ही तुम्हारा सच है
कभी मन करता है कि तुम्हारे दरवाज़े पर आ धमकूं
पर डर जाती हूँ कि तुम किसी और के साथ होगे
मेरे घर में आज मैं ही अजनबी जैसे शर्म कर कतरा जाती हूँ
बहुत सोचती हूँ कि क्यूं किया ऐसा तुमने मेरे साथ
यह सब ऐसा लगता है कि चलचित्र चल रहा हो
या एक बुरा सपना
और तीन घंटे बाद उठ कर घर जायेंगें ,और सब पहले जैसा होगा
या सुबह उठ एक ठंडी सांस भरूँगी कि यह तो सपना ही था
पर यह चलचित्र तो ख़त्म ही नहीं हो रहा
ना ही यह सपना-
और उसके मुख्य अभिनेता भी तुम
और खलनायक भी तुम
aapbeeti hai kisiki jo bahi alfaaz me yun
aur vo bhi ek naye makhsoos se andaaz me yun.
@sidddhanathsingh, तारीफ़ की भी तो क्या अंदाज़ में तो
शुक्रिया अदा करें किस अंदाज़ में तो
This belies my fear that only male-hearts venture on such feelings. ‘What is’,.. is there too as such, and feels alike here with there. Simplicity cum sinciarity of expression is laudable.
@pabitraprem, शुक्रिया
बहुत सुन्दर शब्दों में दिल को झूठा दिलासा देने का अनूठा चित्रण.
@Raj, शुक्रिया राज जी
veryyyy nicely expressed renu,,,khayal bhi bahut khoob 🙂
@prachi sandeep singla, Thanks Prachi !
एक अति सुन्दर गहन भावनिक रचना सी जंची ,
असीम प्यार में अनपेक्षित निराशा का अहसास
बड़ी सुन्दरता से बयाँ
रचना के लिए हार्दिक अभिवादन …
एक बहुत पुराने सुमन कल्यानपुर जी ने गाये हुए गीत की पंक्तियाँ याद आ गयीं
” तुम अगर आ सको तो आ जाओ,
फिर न कहना हमें बुलाया नहीं “
@Vishvnand, bahut shukriya VV ji
your this poem is v natural in the flow ,words .It has kept me reading, captivated till end. 🙂
@kanchana, Thanks Kanchana
bahut khoob, sunder aur man-bhaavan kavita, renu ji, badhai.
@U.M.Sahai, dhanyavaad sahai ji
हार्दिक बधाई !!!
अब पता चला कि p4poetry.com-परिवार के सदस्यों क्यूँ इंतज़ार रहता है आपकी रचनाओं का…… रचना का सामान्य रूप भी कम प्रभावशाली नहीं लग रहा है.
@Harish Chandra Lohumi, bohut shukriya harish ji
प्रेम और पीड़ा कभी भी अलग-अलग नहीं हो सकते हैं.जितना प्रेम शाश्वत है-पीड़ा भी उतनी ही शाश्वत है……..समय के साथ दिल सिर्फ सोचता जाता है और प्रेम और और गहरा होता जाता है.
शानदार कविता.
दिल की बात की सशक्त अभिव्यक्ति…
भावनाओं की लहरों की अनोखी शक्ति…
बीते पलों की स्मृति जो कर ते ताज़ा…
आपकी रचना है इतनी अच्छी… 🙂
रेनू जी,अंतर्मन की कसक,शमा के धुऐं का इन्तजार-ऐ-दर्द,परिस्थितियों का पूर्वाग्रह का मार्मिक मानसिक चित्रण-मन को छू गयी ये अनमोल कृति – मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें रानू जी
भावना प्रधान कविता !!
जो शख्स लुभा रहा है, कहीं मुखौटा तो नहीं पहने है,
छली प्रेमी के इश्क में , दुःख तो जरूर सहने हैं.