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जिन्दगी ! जरा रुक
Hindi Poetry |
नाकाम हे जिन्दगी! जाती कहाँ है, जरा रुक
लिख रहा हु मौत का पैगाम लेती जा, जरा रुक
अब रही ना कोई मुराद इस टूटे दिल में
धडकनों की ढलनें लगी है शाम, जरा रुक
गिले – शिकवों के जो अश्क बहते हैं नैनों में
जाके किसी कोने में उनको समेट लूँ, जरा रुक
वर्षो से जो डर बैठा है इस बर्बाद – इ – दिल में
आँखे चार उस डर से आज कर लूँ , जरा रुक
इस बेरहम जहाँ में दीवानों की सजा मौत है
बेपनाह इश्क कर आज अपना अंजाम देख लूँ, जरा रुक
कई लोग जल रहे हैं मेरे इस नाम से
गुमनाम कर के खुद को इस जहाँ से देख लूँ, जरा रुक
इन्तजार होगा किसी को मेरा कहीं दूर घने अँधेरे में
इंतकाम का ये आखरी राज भी उन्हें बता लूँ , जरा रुक
कुछ है जिनको नहीं देख सकता मै भीगी पलकों में
उनके संग जिन्दगी की आखरी शाम बिता लूँ, जरा रुक
सोये हुवे हैं सब यहाँ इस जिन्दगी के गम में
मैं इस गम-इ-जिन्दगी से खुद को उठा लूँ, जरा रुक
देखे थे कुछ अनचाहे से सपने इन आँखों में
उन आँखों को जरा पलकों से छिपा लूँ, जरा रुक
नाकाम हे जिन्दगी! जाती कहाँ है, जरा रुक
कुछ शब्दों में सुधार की आवश्यकता है जैसे: श्याम की जगह शाम, सिकवे की जगह शिकवे होना चाहिए. भाव बहुत अच्छे हैं.
@U.M.Sahai, I agree with sahai sahab, sapne palkon me dabane se kya tatpary hai ye bhi spasht nahi hota.
@siddhanathsingh,
sapne palkon me chipane ka matlab hai ki ab to meri jindgi khatam to hone hi wali hai to jo bhi anchaahe sapne dekhe the unko palko ke nichce cipalu ya dabalu means apni aankhe band kar du last time pr
@U.M.Sahai, thnx for comment
aapke kahne pr sabdo ko sahi kar diya gaya hai
रचना का अंदाज़ जरूर मन भाया
मगर रचना में कुछ correction और refinement हो
तो पढ़ने में आवे और भी बढ़िया मज़ा …
@Vishvnand, thnx sir ji
correction kar diya gaya hai ji