« बिम्ब | न जाने किधर जा रहा हूँ मैं? » |
न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ..
Hindi Poetry |
चुप अगर तू रहती है, मै सोच में पड़ जाता हू
ख्याल तुझे आते है पर, मै कही खो जाता हू |
अक्सर तेरी उलझन में, मै खुद ही तो फंस जाता हू
न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ||
जब पांव ज़मी पर रखे तू, महसूस मुझे हो जाता है
कोई फांस चुभे मन में तेरे, यहाँ जख्म उभर आता है |
अक्सर तेरी बातों में, मै खुद को भूल जाता हू
न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ||
जब मायूस तेरा दिल होता है, आँख मेरी भर आती है
कोई दर्द तेरे सीने में हो, मेरी धड़कन ही रुक जाती है |
अक्सर तेरी नजरों में, मै खुद को ही तो पाता हू
न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ||
Wah-2 kya khoob kaha aapne!
जब पांव ज़मी पर रखे तू, महसूस मुझे हो जाता है
कोई फांस चुभे मन में तेरे, यहाँ जख्म उभर आता है |
अक्सर तेरी बातों में, मै खुद को भूल जाता हू
न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ||
Pyar isi ka naam hai!
bahut sunder……. badhai 🙂
बहुत मनभावन और सुन्दर रचना ..
हार्दिक बधाई
मज़ा इसी में है जब तक हम समझ नहीं ये पाते हैं
जब आ जाती समझ हमें है, बूढ़े खुद को पाते हैं …. 🙂
priyatam ke sang ekakar, kafee manbhavan udgar,
veryyy nice vijay 🙂 maja aaya padh ke,,keep writing
Beautiful expressions, Vijay.