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न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ..

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Hindi Poetry

 

    चुप अगर तू रहती है, मै सोच में पड़ जाता हू
    ख्याल तुझे आते है पर, मै कही खो जाता हू |
    अक्सर तेरी उलझन में, मै खुद ही तो फंस जाता हू
    न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ||

    जब पांव ज़मी पर रखे तू, महसूस मुझे हो जाता है
    कोई फांस चुभे मन में तेरे, यहाँ जख्म उभर आता है |
    अक्सर तेरी बातों में, मै खुद को भूल जाता हू
    न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ||

    जब मायूस तेरा दिल होता है, आँख मेरी भर आती है
    कोई दर्द तेरे सीने में हो, मेरी धड़कन ही रुक जाती है |
    अक्सर तेरी नजरों में, मै खुद को ही तो पाता हू
    न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ||

5 Comments

  1. Ravi Rajbhar says:

    Wah-2 kya khoob kaha aapne!
    जब पांव ज़मी पर रखे तू, महसूस मुझे हो जाता है
    कोई फांस चुभे मन में तेरे, यहाँ जख्म उभर आता है |
    अक्सर तेरी बातों में, मै खुद को भूल जाता हू
    न जाने क्यू होता है यह, समझ नहीं मै पाता हू ||
    Pyar isi ka naam hai!
    bahut sunder……. badhai 🙂

  2. Vishvnand says:

    बहुत मनभावन और सुन्दर रचना ..
    हार्दिक बधाई
    मज़ा इसी में है जब तक हम समझ नहीं ये पाते हैं
    जब आ जाती समझ हमें है, बूढ़े खुद को पाते हैं …. 🙂

  3. siddha Nath Singh says:

    priyatam ke sang ekakar, kafee manbhavan udgar,

  4. prachi sandeep singla says:

    veryyy nice vijay 🙂 maja aaya padh ke,,keep writing

  5. Raj says:

    Beautiful expressions, Vijay.

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