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***बंद पलकों में…***

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Hindi Poetry

हर लम्हा तुम्हारा साथ मिले

न जुदाई की कोई रात मिले

तुम ऐसी  मुहब्बत न करना 

कि  अश्कों की सौगात मिले  

ख़्वाबों के इक इक तिनके से 

आशियाँ दिल का सजाया है  

तुम बन के सहर ऐसे रहना

हर रात चिरागों की रात मिले

तन्हाई में लेती हैं सांसें

यादें  सिमटी मेरी बाहों में

बंद पलकों में ऐसी लगती हो

जैसे बादल से महताब मिले

क्योँ लब पे तुम्हारे कम्पन है

क्योँ पेशानी पे पसीना आया है

ये स्पर्श मेरा कोई गैर तो नहीं 

बंद पलकों में हम कई बार मिले  

 

सुशील सरना

16 Comments

  1. Harish Chandra Lohumi says:

    उत्तम रचना !!!! बधाई सरना साहब .

  2. Vishvnand says:

    सुन्दर मनभावन रचना,
    बधाई
    “ये स्पर्श मेरा कोई गैर तो नहीं
    बंद पलकों में हम कई बार मिले ” क्या बात है, context में बहुत खूब

  3. Raj says:

    बहुत खूब सुशील जी.

  4. siddha Nath Singh says:

    achchhi lagi

  5. kishan says:

    me aap ki har rachana padhta hu bahut maja aata he padhne me…
    हर रात चिरागों की रात मिले…esi hamari nasib kaha varna hum duniya ke har dhnwanose bade ho jaayenge….jay shree krishna

    • sushil sarna says:

      @kishan,
      रचना ने आपकी भानाओं को छुआ, हार्दिक खुशी हुई, आपकी इस मनभावन प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद किशन जी

  6. prachi sandeep singla says:

    great lines sir esply ending,,kya khayal socha hai,,,wahh!!! 🙂

  7. parminder says:

    ये स्पर्श मेरा कोई गैर तो नहीं
    बंद पलकों में हम कई बार मिले
    वाह, क्या बात है! पढ़कर आनंद आ गया !

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