« Yearnings | तेरे पाँव पड़ूँ ओ सजना, मैं नहीं चढ़ूँगी पलना… » |
***बंद पलकों में…***
Hindi Poetry |
हर लम्हा तुम्हारा साथ मिले
न जुदाई की कोई रात मिले
तुम ऐसी मुहब्बत न करना
कि अश्कों की सौगात मिले
ख़्वाबों के इक इक तिनके से
आशियाँ दिल का सजाया है
तुम बन के सहर ऐसे रहना
हर रात चिरागों की रात मिले
तन्हाई में लेती हैं सांसें
यादें सिमटी मेरी बाहों में
बंद पलकों में ऐसी लगती हो
जैसे बादल से महताब मिले
क्योँ लब पे तुम्हारे कम्पन है
क्योँ पेशानी पे पसीना आया है
ये स्पर्श मेरा कोई गैर तो नहीं
बंद पलकों में हम कई बार मिले
सुशील सरना
उत्तम रचना !!!! बधाई सरना साहब .
@Harish Chandra Lohumi,
रचना ने आपके दिल को छुआ मेरा नसीब, आपका असीम धन्यवाद
सुन्दर मनभावन रचना,
बधाई
“ये स्पर्श मेरा कोई गैर तो नहीं
बंद पलकों में हम कई बार मिले ” क्या बात है, context में बहुत खूब
@Vishvnand,
आपकी इस मनभावन प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार सर जी
बहुत खूब सुशील जी.
@Raj,
धन्यवाद इस प्रशंसा का राज जी
achchhi lagi
@siddha Nath Singh,
धन्यवाद सर जी
me aap ki har rachana padhta hu bahut maja aata he padhne me…
हर रात चिरागों की रात मिले…esi hamari nasib kaha varna hum duniya ke har dhnwanose bade ho jaayenge….jay shree krishna
@kishan,
रचना ने आपकी भानाओं को छुआ, हार्दिक खुशी हुई, आपकी इस मनभावन प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद किशन जी
great lines sir esply ending,,kya khayal socha hai,,,wahh!!! 🙂
@prachi sandeep singla,
Thanks Rchana for such a nice appreciation.
@sushil sarna, i am ”prachi” here sir,,not rachana.
@prachi,
Sorry Prachi for this mistake-Again thanks a lot Prachi for your such a nice appreciation.
ये स्पर्श मेरा कोई गैर तो नहीं
बंद पलकों में हम कई बार मिले
वाह, क्या बात है! पढ़कर आनंद आ गया !
@parminder,
You understood the feeling of the poem, lot of thanks parminder jee