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मेरे अपने मेरे होने की कीमत मांगे…..

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मेरे अपने मेरे होने की कीमत मांगे…..

जब मैं बाजारे-उल्फत में बिकता तो अच्छा था,
मेरे अपने मेरे होने की कीमत मांगे.

जखम कितना भी गहरा हो भर ही जाता है,
मेरा मोजूँ मेरे आज से कुछ मोहलत मांगे.

मेरी कहानी मेरा फ़साना समझना मुश्किल तो नहीं,
मेरी दीवानगी मेरे अजीजों से थोड़ी चाहत मांगे.

गम की परछाई से सूरत बदल जाती है,
मेरी मोहब्बत मेरे ख्वाब भुलाने की फितरत मांगे.

मैंने वायज से भी पूछा तो कोई जवाब न मिला,
दिले-बदनाम शरहे -हयात की खातिर थोड़ी वहशत मांगे.

4 Comments

  1. parminder says:

    मेरी कहानी मेरा फ़साना समझना मुश्किल तो नहीं,
    मेरी दीवानगी मेरे अजीजों से थोड़ी चाहत मांगे
    वाह, सुन्दर!

  2. siddha Nath Singh says:

    मेरा मोजूँ मेरे आज से कुछ मोहलत मांगे.
    मैं समझता हूँ शायद आप “मेरा माजी” कहना चाहते थे,
    बाक़ी अंतिम शेर में वाईज से पूछ कर फिर शरहे हयात के लिए वहशत मांगने के जुमले में वाईज का क्या औचित्य रहा समझ नहीं पाया, वो तो उपदेशक होता है, वो वहशत कैसे देगा.

    • vmjain says:

      @siddha Nath Singh, शरहे-हयात का जवाब जब वायज से नहीं मिला, तो शायर वहशत मांगता है ताकि उसे जीवन के असली मायने समझ आ सके. ये समझना इतना मुश्किल तो न था.

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