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रूठते स्वर …..
Hindi Poetry |
रूठते स्वर …..
टूट चुकी है मन की वीणा,
सरगम मुझसे रूठ चुके हैं,
विलग हो गयी सब झंकारें,
बजते घुँघरू टूट चुके हैं.
राग अलापा करती थी जो,
वह आवाज रुआंसी सी है,
सा पर गा, गा पर धा कहती,
लगी गले मैं फांसी सी है,
ता-धिन, धिन-ता की उंगली पर,
छायी एक उदासी सी है,
धार स्वरों की बदल चुकी है,
कला अब धराशायी सी है.
मत रोको सबको जाने दो,
अब कोई भी आस नहीं है,
जो इनके दिल को बहला दे,
वह स्वर मेरे पास नहीं है.
कभी यहाँ अब नृत्य न होगा,
कभी रचेगी अब ना रास,
थिरकन की वो दक्ष सुन्दरी,
कभी अब न आयेगी पास.
जाते-जाते कह दो इन से,
वापस यहाँ कोई ना आये,
खुद ही गा, खुद ही ये सुन लें,
जो भी इन के दिल को भाये.
*** हरीश चन्द्र लोहुमी
कभी अब ना आयेगी पास. ko aise hona chahiye-कभी ना अब आयेगी पास.
@siddhanathsingh, गुस्ताखी माफ़ हुज़ूर. कारण जानना चाहूंगा.
रचना और अंदाज -ए- बयाँ दोनों अति सुन्दर
और मनभावन, हार्दिक बधाई
रचना तो अलग सी सुन्दर
मन को वैसे भायी है
पर हम कुछ भी समझ न पाए
कैसी और क्या विपदा है..
लगता मन में है बहु हलचल
समझ न पायें क्या गम है
चाहे जो कुछ भी हो जाए
सुर पर रूठो सही न है
सरगम के स्वर ही जीवन है
उनसे नहीं बिछड़ना है
@Vishvnand,
“कभी यहाँ अब नृत्य न होगा,
कभी रचेगी अब ना रास,
थिरकन की वो दक्ष सुन्दरी,
कभी अब न आयेगी पास .”
बहुत-बहुत धन्यवाद सर,
चिंतित होने वाली कोई बात नही है. सब गुजरे जमाने की बातें हैं.
अब तो आपकी अनुकम्पा और आशीर्वाद से सब कुछ ठीक है.
अब आपसे अपनापन सा होने लगा है सर. आशीर्वाद बनाए रखियेगा.
वैसे एक बात जानने की जिज्ञासा रखता हूँ , बचपन मैं भी कत्थक नृत्य से एम ए हो जाता है क्या? नादानी के लिए क्षमा-प्रार्थी ….. एक अनजान …
@Harish Lohumi
आपके response से anxiety ख़त्म हुई, बहुत शुक्रिया
और हाँ, कत्थक नृत्य से एम ए हो जाता है या नहीं मालूम नहीं पर कुछ लोग कत्थक से एम् ए ड़ी होते हैं ऐसा जरूर सुना है … 🙂
@Vishvnand,
हास्य-स्वर तो वापस आ चुके हैं सर. लगता है बांकी स्वर भी आ ही जायेंगे यदि आपका आशीर्वाद बना रहा तो.
मत रोको सबको जाने दो,
अब कोई भी आस नहीं है,
जो इनके दिल को बहला दे,
वह स्वर मेरे पास नहीं है.
दिल में छू गयी
@chandan, चन्दन भाई , गंभीरता से मत लीजिये हर बात को … बड़े धोखे हैं इस राह में …..
मानो तो आपका ….. अग्रज
बहुत खूब हरीश जी.
@Raj, हार्दिक आभार आपका राज जी !!!
बहुत खूब हरीश जी, क्या बात है. सुंदर भाव और कविता, बधाई. रूठना-मनाना तो चलता रहता है. इसी क्रम में कुछ पंक्तियाँ पेश हैं:
आज टूटा हुआ दिल का हर साज है
अब वो धड़कन कहाँ, सिर्फ़ आवाज़ है.
@U.M.Sahai, क्या बात है सहाय साहब ! शुक्रिया आपका तह-हे -दिल से .