« आज मन इतना हल्का हुआ | इस जग में अगर न मां होती » |
***शोक में…***
Hindi Poetry, July 2010 Contest |
जब जिस्म से
साँसों का बंधन टूट जाता है
विछोह की वेदना में
हर शख्स शोक मनाता है
शोक में दुनियादारी के लिए
चंद अश्क भी बहाए जाते है
आपसी मतभेद छुपाये जाते हैं
याद किया जाता है उसके कर्मों को
उससे अपने प्रगाड़ सम्बन्धों के
मनके गिनवाए जाते हैं
ऐसे अवसरों पर अक्सर
ऐसे शोक में डूबे
नजारे नजर आ जायेगे
और पल भर में अपने
आडम्बर की कहानी कह जायेंगे
ऐसे ही एक अवसर पर
जाने कितने काँधे
एक जिस्म को उठाने
के लिए आतुर थे
हाँ
आज वो सिर्फ और सिर्फ
एक जिस्म था
बेजान, निरीह
गुलाब के फूलों से सजा
कल तक जो चौखट
उसके आने का
इन्तजार करती थी
आज उस चौखट से
उसका नाता टूट गया
हर रिश्ते का धागा टूट गया
कौन जाने
किसके दिल में दर्द कितना है
जाने किसके सूखे अश्कों में
ये जिस्म दूर तक जिन्दा रह पायेगा
अपने बीते हुए हर पल की
कहानी कह पायेगा
हर रिश्ते की आँख
कुछ दिनों में सूख जायेगी
जिस्म जल जाएगा
अस्थियाँ गंगा में बह जायेंगी
सब अपना फर्ज निबाह कर
दुनियादारी में लग जायेंगे
किसके लिए शोक किया था
शायद ये भी भूल जायेंगे
फ्रेम में जड़ी तस्वीर के आगे
सिर को झुका के निकल जायेंगे
दुनियादारी के शोक तो
अश्कों के साथ बह जायेंगे
मगर
टूटा है जिसका साथ
वो सदा के लिए
टूट जाएगा
उसका हर अन्तरंग पल
उसकी अनुभूति से
गीला हो जाएगा
जिन्दा रहेगा जब तक
दिल
उसके अक्स को
न भुला पायेगा
दिखेगा न किसी को
और
शोक दिल का
हमसाया हो जाएगा,हमसाया हो जाएगा,
हमसाया हो जाएगा ….
सुशील सरना
Dear sir aap ki kalam lajavaab he …aur kya kahe hum..jay shree krishna
@kishan,
आपने रचना को इतना मान दिया, हार्दिक आभार जय श्री कृष्णा किशन जी
सुन्दर भाव पूर्ण कृति.
@Raj,
आपकी इस मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार राज जी
achchhi lagi, visheshkar ye panktiyan-जाने किसके सूखे अश्कों में
ये जिस्म दूर तक जिन्दा रह पायेगा
@siddha Nath Singh,
दिल की असीम गहराईयों से आपका शुक्रिया सर जी
अंत तो निश्चित है ही और आपकी रचना वास्तविकता के बहुत करीब है| शिव कुमार बटालवी जी की अत्यंत ही खूबसूरत रचना याद आ गयी ” जदों मेरी अर्थी उठा के चलंगे, सारे यार हुम-हुमाके चलंगे”
@parminder,
thanks from the bottom of my heart for such a nice poetic appreciation though it is a sorrow poem perminder jee