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चाँद और मैं!

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Hindi Poetry

जब भी कभी मन दुखी और उदास होता है
छत पर पहुच जाती हूँ
कोने में लगे मुरझाये पेड़ के नीचे
अधमरा चाँद सहसा ही दिख जाता है!

मैं चाँद को
और चाँद मुझको
देख कर
अपनी क्षुब्धा शांत करते है!
जब इतनी भीड़ भाड़ वाली दुनिया में
हम दोनों अकेले ही मिलते है!

एक टकटकी लगा कर
आँखों में आँखें डाल कर
हम घंटो बातें करते है
और अपना मन हल्का कर लेते है
जब कभी अपनी पीड़ा आंसुओ के सहारे भी
हम व्यक्त कर लेते है!

आज अमावस की रात
चाँद भी ओझल है दूर कही
साथी, कमी खल रही है
बोलो क्या है बात सही?

काली रात का खालीपन
भीगोये जाए मन
आएगा कब, साथी मेरा
बस यही पूछे सारा सूना चमन!

6 Comments

  1. kishan says:

    रचना बहुत अच्छी हैं एसा तो हम कह नहीं सकते !!!! क्यूंकि आप को बुरा लगेगा …..:) लेकिन रचना जी आप की कविता अच्छी हैं …जय श्री कृष्ण

  2. U.M.Sahai says:

    विरह और उदासी को दर्शाती एक सुंदर कविता, रचना, बधाई.

  3. dr. ved vyathit says:

    वियोग श्रृंगार की सुंदर अभिव्यक्ति
    भाव का अच्छा निर्वहन किया है
    अन्यथा मत लेना यह सारा चमन यानि पूछने को जमाना कहाँ से बीच में आ गया
    चाँद तो बेदर्द है वो ये ही करता है
    हम उसे यूं देख करबेशक जिया करें
    कब वहकहता है अपनी असलियत हम से
    भले कडवे घूँट हम बेशक पिया करें

  4. rachana says:

    Sir,

    chaman se mera matlab surrounding se hai jo hamari meetings ka witness hai. 🙂

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