« कठिन जीवन की डगर! | “””एक प्रसंग””” » |
चाँद और मैं!
Hindi Poetry |
जब भी कभी मन दुखी और उदास होता है
छत पर पहुच जाती हूँ
कोने में लगे मुरझाये पेड़ के नीचे
अधमरा चाँद सहसा ही दिख जाता है!
मैं चाँद को
और चाँद मुझको
देख कर
अपनी क्षुब्धा शांत करते है!
जब इतनी भीड़ भाड़ वाली दुनिया में
हम दोनों अकेले ही मिलते है!
एक टकटकी लगा कर
आँखों में आँखें डाल कर
हम घंटो बातें करते है
और अपना मन हल्का कर लेते है
जब कभी अपनी पीड़ा आंसुओ के सहारे भी
हम व्यक्त कर लेते है!
आज अमावस की रात
चाँद भी ओझल है दूर कही
साथी, कमी खल रही है
बोलो क्या है बात सही?
काली रात का खालीपन
भीगोये जाए मन
आएगा कब, साथी मेरा
बस यही पूछे सारा सूना चमन!
रचना बहुत अच्छी हैं एसा तो हम कह नहीं सकते !!!! क्यूंकि आप को बुरा लगेगा …..:) लेकिन रचना जी आप की कविता अच्छी हैं …जय श्री कृष्ण
@kishan,
mujhe jo kehna tha keh dia..apko jo kehna hai kahiye..isme bura manne wali kya baat hai…:-)
विरह और उदासी को दर्शाती एक सुंदर कविता, रचना, बधाई.
@U.M.Sahai,
thank you Sir!
वियोग श्रृंगार की सुंदर अभिव्यक्ति
भाव का अच्छा निर्वहन किया है
अन्यथा मत लेना यह सारा चमन यानि पूछने को जमाना कहाँ से बीच में आ गया
चाँद तो बेदर्द है वो ये ही करता है
हम उसे यूं देख करबेशक जिया करें
कब वहकहता है अपनी असलियत हम से
भले कडवे घूँट हम बेशक पिया करें
Sir,
chaman se mera matlab surrounding se hai jo hamari meetings ka witness hai. 🙂