« अभी से हार जाना क्या जंचेगा | फिर तुम्हे याद किया » |
”चार लाइनें”–२७
Hindi Poetry |
आज के ज़माने में किसी को प्यार की कद्र कहाँ है,
हर किसी का अपना ही एक मस्त जहाँ है,
अपनी ही दुनिया में इस कदर खोया है हर इंसान,
कि दिलों में प्यार के पनपने की जगह ही कहाँ है…!!!
एक ही इश्क है ,एक ही मोहब्बत है
स्वयं ही वर है; स्वयं ही जहां है
सही कहा ,आपने
@renu rakheja, well said renu,,thanx 🙂
सुन्दर कथन
बात तो बिलकुल सही है
आज इंसान को सिर्फ व्यवहार से प्यार है ….
@Vishvnand, shukriya 🙂
sach kaha
sundar kaha
man bha liya
dil jhoom utha
loved it
@rajdeep bhattacharya, thank you rajdeep sir 🙂
आप की सुन्दर कविता ने फैज़ अहमद फैज़ की लाईनें याद दिला दीं-
और भी दुःख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा.
और साहिर लुधियानवी की लाईने –
ज़िन्दगी सिर्फ मुहब्बत नहीं कुछ और भी है
ज़ुल्फो रुखसार की जन्नत नहीं कुछ और भी है,
भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनिया में,
इश्क ही एक हकीकत नहीं कुछ और भी है.
@siddha Nath Singh, veryyyy beautiful lines sir u hv reminded,,thanx a ton 🙂 m obliged
क्या कहूं ? सोचना पड़ेगा.
@pabitraprem, thanx 4 commenting 🙂
बहुत सुंदर भाव व लाइने, प्राची बधाई, पर इसका दूसरा पहलू भी है:
अपनी दुनिया में खोया ज़रूर है इंसान
पर वो प्यार का भूखा है
मिलता है प्यार उसे जहाँ
वह वहीँ पर जाता है
इसीलिए अपने प्यार पर
वह अपना सब कुछ लुटाता है.
@U.M.Sahai, shukriya 🙂
very nice… 🙂
@Ravi Rajbhar, thanx ravi ji 🙂
Rightly said.
@Raj, shukriya raj 🙂